राजगीर मलमास मेला कब और क्यों लगता है? क्या मान्यता है ?..सब जानिए

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नालंदा जिला का राजगीर पर्यटन के लिए बिहार में ही दुनिया भर में मशहूर है। हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक जापान, श्रीलंका, चीन, थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनिशिया,नेपाल जैसे देशों से आते हैं। राजगीर पर्यटकों के लिए रमणनीय स्थल तो है ही। साथ ही इसकी अपनी धार्मिक महत्ता भी है। कहा जाता है कि मलमास मेला के दौरान हिन्दू धर्म के  तमाम 33 करोड़ देवी-देवता यहां निवास करते है । दुनिया का एकमात्र जगह है जहां मलमास मेला लगता है। इस भी तीर्थनगरी राजगीर में  16 मई 2018 से मलमास मेला लग रहा है। लेकिन ये मलमास मेला है क्या ? कब और और क्यों लगता है ? इसकी महत्ता क्या है? जैसे सवाल जनमानस के मन मस्तिष्क में घुमता रहता है।

क्या है मलमास

इसे अधिक मास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। ज्योतिषों की गणना के मुताबिक हर तीन साल के बाद एक माह बढ़ जाता है। हिंदू धर्म में तारीखों की गणना दो विधि से की जाती है। प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी एक अतिरिक्त महीने को अधिकमास यानि मलमास का नाम दिया गया है। इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।

अधिमास क्यों कहा जाता है

भारतीय हिंंदू गणना में यानि सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष में तीन साल बाद दोनों में करीब एक महीने का अंतर आ जाता है। इसी एक महीने के अंतर को अधिमास कहा जाता है

मलमास क्यों कहा जाता है

इस एक महीन में मलमास में शुभ कार्य वर्जित होता है। जैसे शादी-विवाह, गृहप्रवेश आदि की मनाही होती है। मान्यता के मुताबिक इसे शुरुआत में मलिन माह कहा जाता था जिसे बाद में मलमास कहा जाने लगा।

पुरुषोत्तम मास क्यों कहते हैं

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कहा जाता है कि जब ऋषि मुनियों ने समय की गणना की और एक महीना अतिरिक्त निकला। ऐसे में सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष में संतुलन बैठाना मुश्किल हो रहा था। ऋषियों ने देवताओं से इस एक महीने का स्वामी बनने का आग्रह किया तो कोई भी बनने को तैयार नहीं हुए। जिसके बाद ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से इस अधिक मास का भार अपने ऊपर लेने का आग्रह किया। तो भगवान विष्णु ने इसे स्वीकार कर लिया और इसे पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा।

राजगीर में  22 कुंडों और 52 जलधाराओं की उत्पति की कहानी

वायु पुराण के मुताबिक भगवान ब्रह्मा के पौत्र राजा बसु ने इसी मलमास महीने के दौरान राजगीर में ‘वाजपेयी यज्ञ’ करवाया था। जिसमें सभी 33 करोड़ देवी देवाओं को आने का न्योता दिया। इस दौरान काग महाराज को छोड़कर बाकी सभी देवी देवता वहां पधारे। यज्ञ में पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी। इस दौरान देवी देवताओं को एक ही कुंड में स्नान करने में परेशानी होने लगी। तभी ब्रह्मा जी ने राजगीर में 22 अग्निकुंडों के साथ 52 जल घाराओं का निर्माण कराया ।
ह्मा जी ने किन  22 कुंडों का निर्माण कराया जानिए

ब्रह्मकुंड, सप्तधारा, व्यास, अनंत, मार्केण्डेय, गंगा-यमुना, काशी, सूर्य, चन्द्रमा, सीता, राम-लक्ष्मण, गणेश, अहिल्या, नानक, मखदुम, सरस्वती, अग्निधारा, गोदावरी, वैतरणी, दुखहरनी, भरत और शालीग्राम कुंड। जिसमें ब्रह्मकुंड का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस रहता है।

कहां से आता है इस कुंड में पानी
बताया जाता है कि यहां सप्तकर्णी गुफाओं से पानी आता है। यहां वैभारगिरी पर्वत पर भेलवाडोव तालाब है, जिससे ही जल पर्वत से होते हुए यहां पहुंचता है। इस पर्वत में कई तरह के केमिकल्स जैसे सोडियम, गंधक, सल्फर हैं। इसकी वजह से पानी गर्म होता है।

मलमास मेला के दौरान राजगीर में क्यों नहीं दिखता है काग

वायु पुराण के मुताबिक वाजपेयी यज्ञ में काग महाराज को छोड़कर बाकी सभी देवी देवता इसमें शरीक हुए थे। क्योंकि राजा बसु ने भूलवश काग महाराज को न्योता देना भूल गये थे। इसके कारण महायज्ञ में काग महाराज शामिल नहीं हुए। उसके बाद से मलमास मेले के दौरान राजगीर के आसपास काग महाराज कहीं दिखायी नहीं देते हैं।

मलमास मंत्र जानिए
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्। गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।

ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र का जप करते समय पीले वस्त्र धारण करने चाहिए, अत्यंत लाभ प्राप्त होता है। इसके साथ ही पूजा तथा हवन के साथ दान करना भी लाभकारी माना गया है।

ऐतरेय ब्राह्रण के मुताबिक इस महीने में कोई भी शुभ एवं मंगल कार्य करने की मनाही होती है। यानि मलमास के महीने में  शादी-ब्याह, गृहप्रवेश जैसे शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। वहीं, अग्नि पुराण के अनुसार मलमास  में मूर्ति पूजा–प्रतिष्ठा, यज्ञदान, व्रत, वेदपाठ, उपनयन, नामकरण आदि वर्जित है, लेकिन इस अवधि में राजगीर सर्वाधिक पवित्र माना जाता है । लेकिन इस दौरान राजगीर में सभी 33 करोड़ देवी देवता मौजूद रहते हैं ऐसे में राजगीर में जाकर स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है । साथ ही चर्म रोग, कुष्ठ रोग जैसे व्याधियां भी नष्ठ हो जाती है ।

कैसे पहुंचे राजगीर

हवाई मार्ग (By Air)– सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पटना (107 किमी)।
रेलमार्ग (By Train)– आपको पटना, गया, दिल्ली, कोलकाता, मुगलसराय आदि जगहों से ट्रेन मिल जाएगी । जैसे श्रमजीवी एक्सप्रेस, सारनाथ एक्सप्रेस, दानापुर राजगीर पैसेंजर, राजगीर-दानापुर इंटरसिटी। गया-बख्तियारपुर इंटरसिटी

सड़क मार्ग (By Road) पटना, गया, दिल्ली और कोलकाता से आपको राजगीर के लिए आसानी से बसें मिल जाएंगी। राजगीर के लिए कई टैक्सी और एसी बसें भी चलती हैं।

इन महत्वपूर्ण स्थलों की कर सकते हैं सैर
विश्व शांति स्तूप, सोन भंडार, जरासंध का अखाड़ा, बिम्बिसार की जेल, नौलखा मंदिर, जापानी मंदिर, रोपवे, घोड़ाकटोरा डैम, वेणुवन, वीरायतन, मणियार मठ, श्रीकृष्ण भगवान के रथ के चक्कों के निशान, सुरक्षा दीवार, जेठियन बुद्ध पथ, बाबा सिद्धनाथ का मंदिर, सप्तपर्णी गुफा, गृद्धकूट पर्वत, जैन मंदिर।  इसके अलावा आप नालंदा विश्वविद्यालय, नालंदा खंडहर, बिहारशरीफ, पावापुरी और बोधगया की सैर भी कर सकते हैं ।

मनोरंजन का भरपूर इंतजाम

मलमास मेला के दौरान राजगीर दुल्हन की तरह सजा रहता है। मनोरंजन के लिए सर्कस के साथ थियेटर की भी व्यवस्था रहती है। इस दौरान रातभर थियेटर और सर्कस में मनोरंजन की व्यवस्था रहती है । यानि धर्म के साथ साथ आप मनोरंजन का भी आनंद उठा सकते हैं ।

राजगीर हिंदू धर्मालब्बियों के लिए ही नहीं बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए भी एक पवित्र स्थल है । हर साल यहां लाखों की संख्या में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग आते हैं ।

इसे भी पढ़िए-राजगीर मलमास मेला में कब-कब होगा शाही स्नान.. जानिए

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