
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सूबे की सियासत एक बार फिर गरमा गई है । और हो भी क्यों ना.. क्योंकि तीन साल बाद चाचा नीतीश कुमार और भतीजे तेजस्वी यादव के बीच लगातार दो दिनों में दूसरी बार अकेले में मुलाकात हुई..0123
पहली मुलाकात, 20 मिनट तक बात
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बीच मंगलवार यानि 25 फरवरी को मुलाकात हुई . दोनों नेताओं के बीच करीब 20 मिनट तक अकेले में बात हुई थी. हालांकि बाद में आरजेडी नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी और ललित यादव पहुंचे.. बताया जा रहा है कि पहले दिन बातचीत की पेशकश तेजस्वी यादव की ओर से की गई थी. सूत्रों की मानें तो ललित यादव ने सीएम नीतीश कुमार के पास तेजस्वी यादव का संदेश पहुंचाया था कि वो अकेले में मिलना चाहते हैं. जिसके बाद नीतीश कुमार ने हामी भर दी थी और दोनों नेताओं के बीच करीब 20 मिनट तक बात हुई थी
दूसरी मुलाकात, 20 मिनट तक बात
मंगलवार को बातचीत और मुलाकात की पेशकश तेजस्वी यादव ने की थी. तो बुधवार को पेशकश करने की बारी जेडीयू की थी. बताया जा रहा है कि जेडीयू के तरफ से ललित यादव को संदेश भिजवाया गया की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तेजस्वी यादव के साथ चाय पीना चाहते हैं. जिसके बाद तेजस्वी यादव तुरंत तैयार हो गए और विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी के कमरे में पहुंच गए. जहां करीब 15-20 मिनट तक दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई.
नीतीश के साथ जाने पर साधी चुप्पी
कक्ष से बाहर निकल कर तेजस्वी ने कहा कि औपचारिक तौर पर चाय पीने के लिए अध्यक्ष के चेंबर में गए थे. अगर अरविंद केजरीवाल अमित शाह से मिलने जा सकते है तो क्या हम नीतीश कुमार से नहीं मिल सक1234ते हैं.
इसे भी पढ़िए-मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने बुके से किया स्वागत.. जानिए पूरा मामला
सरकार को अस्थिर नहीं होने देंगे
जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या फिर से नीतीश कुमार के साथ वो जा सकते हैं उन्होंने खुलकर तो कुछ नहीं कहा. लेकिन ये कहकर जरूर चौंका दिया कि बिहार में सरकार को अस्थिर नहीं होने देंगे. यानि अगर एनआरसी और एनपीआर के मुद्दे पर बीजेपी कुछ खेल करती है तो वो नीतीश सरकार को समर्थन दे सकते हैं. ऐसा 2013 में भी हो चुका है, जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ा था तो राष्ट्रीय जनता दल(आरजेडी) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बिना शर्त बाहर से सरकार को समर्थन दिया था.
चुनाव से पहले चली जा रही चालें
बिहार में इस साल अक्टूबर में चुनाव है. इस बीच एनआरसी और एनपीआर के मुद्दे पर सियासी चाले चली जा रही हैं. अब ऊंट किस करवट बैठेगा, ये कहना तो मुश्किल है लेकिन जिस तरीके से चीजें बदल रही हैं, उससे लगता है कि चुनाव आते आते कुछ उलट फेर हो जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.