RBI ने कहा- निगेटिव रहेगी GDP ग्रोथ, कैसे ‘बर्बाद’ हो जाएंगे आप समझिए

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कोरोना ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी है। रिजर्व बैंक ने पहली बार माना है कि देश में जीडीपी ग्रोथ निगेटिव में रहेगी। जिससे हर भारतीय कंगाली की कगार पर खड़ा हो जाएगा। इसे समझने के लिए पहले आपको बताते हैं कि जीडीपी क्या होता है।

क्या है सकल घरेलू उत्पाद (GDP) ?
एक निश्चित अवधि में किसी देश में उत्पादित, आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त अंतिम माल और सेवाओं का बाजार मूल्य ही सकल घरेलू उत्पाद है. यह एक आर्थिक संकेतक भी है जो देश के कुल उत्पादन को मापता है. देश के प्रत्येक व्यक्ति और उद्योगों द्वारा किया गया उत्पादन भी इसमें शामिल है. प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी पर कैपिटा) सामान्यतया किसी देश के जीवन-स्तर और अर्थव्यवस्था की समृद्धि सूचक माना जाता है.

कैसे मापते हैं जीडीपी?
जीडीपी को दो तरह से प्रस्तुत किया जाता है. वास्तव में उत्पादन की कीमतें महंगाई दर के साथ घटती-बढ़ती रहती हैं. जीडीपी को मापने के दो तरीके हैं. पहला पैमाना है कांस्‍टैंट प्राइस. इसके तहत जीडीपी की दर व उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय किया जाता है. दूसरा पैमाना करेंट प्राइस है जिसमें उत्पादन वर्ष की महंगाई दर इसमें शामिल होती है.

भारत में कैसे तय करते हैं जीडीपी?
भारत में कृषि, उद्योग और सेवा जीडीपी के तीन प्रमुख घटक हैं. इन क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने-घटने की औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है. देश की जीडीपी में सालाना तीन फीसदी की बढ़ोतरी का मतलब यह है कि अर्थव्यवस्था तीन फीसदी की दर से बढ़ रही है. इस आंकड़े में महंगाई दर को शामिल नहीं किया जाता. भारत में जीडीपी की गणना हर तिमाही की जाती है. जीडीपी के आंकड़े अर्थव्‍यवस्‍था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित हैं.

आप पर कैसे असर डालती है जीडीपी?
जीडीपी का प्रतिनिधित्व आर्थिक उत्पादन और विकास करता है. देश की अर्थव्यवस्था से संबंधित हर व्यक्ति पर यह प्रभाव डालता है. जीडीपी बढ़ने-घटने की स्थिति में शेयर बाजार पर असर पड़ता है. नकारात्मक जीडीपी (नेगेटिव जीडीपी) निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन जाती है. नकारात्मक जीडीपी वास्तव में देश के आर्थिक मंदी के दौर से गुजरने का संकेत है. ऐसे समय में जब देश में उत्पादन घटता है तो बेरोजगारी बढ़ जाती है. इस वजह से हर व्यक्ति का कामकाज, आमदनी, खर्च-निवेश करने की क्षमता और देश की अर्थव्यवस्था भी इससे प्रभावित होती है.

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