बिहार शरीफ का इतिहास जानिए

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बिहारशरीफ जल्द ही स्मार्ट सिटी बनने वाला है और नालंदा जिला का मुख्यालय है। बिहार शरीफ दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द ‘बिहार’ है जो ‘विहार’ शब्द का अपभ्रंश है। विहार का मतलब वो जगह जहां बौद्ध अनुयायी रहकर उच्च शिक्षा ग्रहण करते थे। आपको बता दें कि ‘बिहार’ राज्य का नाम भी उसी ‘विहार’ से लिया गया है। दूसरा शब्द है ‘शरीफ’ यानि वो जगह जहां सूफी संत आराम करते थे। जैसे मनेर शरीफ, अजमेर शरीफ आदि। बिहार शरीफ में शेख शफूर्दीन याहिया मनेरी ने आकर आराम किया था। तो अजमेर शरीफ में हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती और मनेर शरीफ में मखदूम यहया मनेरी साहब। यानि बिहारशरीफ वो जगह है जिसके नाम में ही गंगा-जमुनी तहजीब दिखता है और दुनिया को आपसी भाईचारे संदेश देता है ।

बिहार शरीफ का इतिहास (History Of Bihar Sharif)

बिहारशरीफ का इतिहास काफी पुराना है । यहां पांचवीं शताब्दी के गुप्त काल का एक स्तंभ भी है। बिहारशरीफ का पुराना नाम ओदंतपुरी जिसे उदंतपुरी (Odantapuri) भी कहा जाता है। 7वीं शताब्दी में पाल वंश के शासक गोपाल ने इस इलाके में कई विहार (बौद्ध मठ) का निर्माण करवाया था और इसे अपनी राजधानी बनाया। 10वीं शताब्दी तक बिहारशरीफ पाल राजवंश की राजधानी रहा।

साल 1193 में आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर आक्रमण किया। इस दौरान उसने कई बौद्ध मठों को बर्बाद कर दिया। उसी बख्तिायर खिलजी के नाम पर “बख्तियापुर” का नाम पड़ा। आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने ओदंतपुरी यूनिवर्सिटी को तहस नहस कर दिया। बख्तियार खिलजी के लौटने के बाद स्थानीय बुंदेलों ने बिहारशरीफ पर दोबारा कब्जा कर लिया और यहां राजा बिठल का शासन स्थापित हुआ । राजा बिठल और बुंदेलों ने करीब सौ साल तक राज किया। साल 1324 में दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने अपने एक अफगान योद्धा सैय्यद इब्राहिम मलिक को आक्रमण के लिए भेजा। जिसमें बुंदेलों की हार हुई और राजा बिठल मारे गए। इसके बाद बिहारशरीफ पर दिल्ली सल्तनत का सीधा कब्जा हो गया। सैय्यद इब्राहिम मलिक की इस जीत से खुश होकर सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने इब्राहिम मलिक को “मृदुल मुल्क” और “मलिक बाया” की उपाधि दी। सैय्यद इब्राहिम मलिक ने करीब 30 सालों तक यहां राज किया। साल 1353 में सैय्यद इब्राहिम मलिक की हत्या कर दी गई। बिहारशरीफ के पीर पहाड़ी ( जिसे हिरण्य पर्वत कहा जाता है) की चोटी पर इब्राहिम मलिक को दफनाया गया। ये संरचना दुर्लभ गुणवत्ता वाली ईंटों से बनी है जिसने पिछले 600 सालों से समय, मौसम और लूटपाट की चुनौतियों का सामना किया है। इस गुंबद के अंदर इब्राहिम मलिक के अलावा उसके परिवार के सदस्यों की 10 कब्रें हैं। उधर, राजा बिठल की मौत के बाद बुंदेला राजपूत गढ़पर और तुंगी गांव में जाकर बस गए। यहां हिंदू, मुस्लिम भाई-भाई की तरह रहने लगे। अंग्रेजों के शासनकाल में यानि 1867 में बिहारशरीफ में नगरपालिका गठन किया गया। आजादी के बाद बिहारशरीफ में कई बार दंगे भी हुए। लेकिन सबसे भयंकर दंगा साल 1981 में हुआ था जिसमें कई बेगुनाहों की जान गई थी। कहा जाता है कि इस दंगे के पीछे भी राजनीति थी। जिससे बिहारशरीफ के गंगा-जमुनी तहजीब को धक्का लगा। आजादी के बाद बिहारशरीफ काफी उपेक्षित रहा। इसकी गिनती बिहार के गंदे शहरों में होने लगी थी । लेकिन नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब यहां का पुराना गौरव लौट रहा है । बिहारशरीफ को स्मार्ट सिटी में चुना गया है औऱ अब इसकी गिनती बिहार राज्य के सबसे साफ शहरों में होने लगी है।

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