खेतों में फसल के अवशेष जलाने से किसान बाज नहीं आ रहे हैं. ऐसे में जिला प्रशासन ने इन किसानों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है। नालंदा जिला में ऐसे किसानों को तीन साल के लिए योजनाओं का लाभ से वंचित करते हुए प्राथमिकी दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है।
108 किसानों के खिलाफ कार्रवाई
जिला प्रशासन के मुताबिक 108 किसानों में 82 खरीफ और 26 ने रबी फसल का अवशेष जलाया है। 82 किसानों पर पहले ही कार्रवाई हो चुकी है। रबी फसल की पराली जलाने वाले अन्य किसानों को चिन्हित किया जा रहा है। डीएओ विभू विद्यार्थी ने बताया कि अभी तक 26 किसानों का रजिस्ट्रेशन रद्द करते हुए कृषि विभाग की सभी योजनाओं से वंचित कर दिया गया है।
13 एकड़ में जलायी गयी पराली
डीएओ ने बताया कि प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार अब तक 9 पंचायतों के करीब 13 एकड़ रकवे के फसल की पराली जलायी गयी है। सबसे ज्यादा वेन प्रखंड के 12 पंचायतों में फसल अवशेष जलाने की रिपोर्ट है। इसके अलावे राजगीर, इसलामपुर, सिलाव, हरनौत एवं थरथरी में भी पराली जलाया गया है। इन प्रखंडों के एकसारा, आंट, खरीया, लोदीपुर, बरनौसा, मुजफ्फरा, करियन्ना, सबनहुआ और थरथरी पंचायत के किसानों ने पराली जलायी है।
रात में जला रहे हैं पराली
जिला कृषि पदाधिकारी के मुताबिक कार्रवाई के डर से किसान अब रात में पराली जला रहे हैं. ऐसे किसानों पर विशेष नजर रखने का निर्देश किसान सलाहकार और समन्वयक को दिया गया है। कहा गया कि जो किसान रात में पराली जलाते हैं दिन में उनके खेत की तस्वीर खींचकर गांव और किसानों के नाम के साथ रिपोर्ट करें। यदि किसी तरह की चूक हुई तो संबंधित प्रखंड के पदाधिकारी और कर्मी पर कार्रवाई होगी।
किन किसानों पर हुई कार्रवाई
एकसारा पंचायत के चिंता देवी, महेश, पुष्पा कुमारी, जितेन्द्र, ललन, धनंजय, श्याम सिंह, अंट पंचायत के अजीत कुमार, चन्द्रशेखर प्रसाद, मालती मधु, राजाराम, खैरा पंचायत के अरविंद प्रसाद, लोदीपुर पंचायत के शंभू चौधरी, बरनौसा पंचायत की सुनीता देवी, मुजफ्फरा पंचायत के रजनीकांत, करियन्ना पंचायत के उपेन्द्र सिंह, प्रदुम्मन नारायण शर्मा, सबनहुआ पंचायत के बृजनंदन सिंह, सुरेन्द्र यादव, थरथरी पंचायत के सत्यजीत कुमार, रामप्रवेश प्रसाद सिंह, अरविंद के अलावा दो किसान हैं।
कटाई के बाद अवशेष को जलाएं नहीं
कृषि वैज्ञानिक का मानना है कि कोई भी फसल का पौधा अनाज देने के साथ-साथ उसके अवशेष भी लाभ पहुंचाता है। जानकारी के आभाव में किसान इसका लाभ नहीं ले पाते हैं। फसल कटाई के बाद उसके अवशेष को जलाने की जगह जुताई कर खेत में ही पानी भर दिया जाये तो सड़कर यह उर्वरक का काम करेगा। अवशेष को जला देने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम होने के साथ-साथ कई मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं और प्रदूषण भी फैलता है।