एलोवेरा की खेती कर आत्मनिर्भर बना एक गांव.. अब एलोवेरा विलेज के नाम से जानते हैं लोग

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किसानों की आय को बढ़ाने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए अब खेती के नए तौर तरीके अपनाए जा रहे हैं. किसानों को उन चीजों की खेती के बारे में सिखाया जा रहा है. जिससे उनकी आमदनी बढ़े और वे आत्मनिर्भर हो सकें. ऐसे में आजकल औषधीय खेती की मांग काफी बढ़ गई है. हालात ये है कि औषधीय खेती की बदौलत अब उद्योगपति सीधे किसानों से अपनी माल के लिए संपर्क कर रहे हैं.

देवरी बन गया एलोवेरा विलेज
झारखंड की राजधानी रांची से महज 25 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है. उसका नाम देवरी है. दो साल पहले तक लोग इस गांव के बारे में कोई खास दिलचस्पी नहीं रखते थे. लेकिन पिछले दो साल में गांव की तस्वीर ही बदल गई है. अब लोग देवरी को एलोवेरा विलेज के नाम से जानते हैं. क्योंकि दो वर्ष पहले बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के तहत यहां औषधीय पौधे की खेती शुरू की गई थी

महिला मुखिया ने दिलाई नई पहचान
इसके लिए गांव की महिला मुखिया मंजू कच्छप ने काफी मेहनत की और लोगों को जागरुक करने का काम किया. मंजू कच्छप के नेतृत्व में गांव के करीब 35 जनजातीय लोगों को बीएयू की तरफ से प्रशिक्षण दिया गया. साथ ही गांव में एक ग्रीन हाउस और लाभुकों को जैविक खाद तथा गांव में करीब छह हजार एलोवेरा के पौधों का वितरण किया गया था. इसमें बीएयू के वानिकी इन हर्बल रिसोर्स टेक्‍नोलॉजी के छात्र-छात्राओं की सराहनीय भूमिका रही. वे समय-समय पर गांव में जाकर लोगों की समस्याओं को दूर करते रहे.

लोगों के आय में हुई वृद्धि
इस गांव के लोगों की माने तो पहले इसकी खेती शुरू करने में काफी डर लग रहा था, लेकिन हिम्मत कर के लगाए जिससे की काफी लाभ मिला है,कम मेहनत में अधिक मुनाफा इस खेती से हो रहा है. एलोवेरा पौधा तैयार होने में करीब 18 माह का समय लगता है. एक-एक पत्तियों का वजन औसतन आधा किलो के करीब होता है. ग्रामीणों द्वारा पॉली बैग में प्रति पौधा 25-30 रुपये तथा बिना पोली बैग का 15-20 रुपये में बेचा जाता है. इसकी खेती से लोगों की आमदनी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.

आयुर्वेदिक कंपनिया कर रही है गांव का दौरा
पिछले कुछ दिनों से गांव में आयुर्वेदिक प्रोडक्ट बनाने वाली कई आयुर्वेद की कंपनियों ने गांव का दौरा किया है. इसके साथ ही सीधे ग्रामीणों से व्यापार का प्रस्ताव दिया है. गांव की मुखिया की ओर से किसानों की मदद के लिए कुछ सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) भी बनाया गया है. ऐसे में रांची और आसपास की कई केमिकल कंपनियां गांव के लोगों के साथ दो साल का अनुबंध तक करने के लिए तैयार है.

हैंड सेनिटाइजर बनाने में किया जा रहा इस्तेमाल
कोरोना संकट की घडी में एलोवेरा की मांग दिन प्रतिदिन बढती जा रही है. कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए एक तिहाई एलोवेरा जेल, दो तिहाई रुब्बिंग आइसोप्रोपाइल अल्कोहल को मिश्रित कर एक चम्मच सुगंधित तेल से कम कीमत पर सेनेटाईजर बनाया जाता है.

एलोवेरा औषधीय पौधे के रूप में विश्व विख्यात है
एलोवेरा को घृत कुमारी या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है. यह औषधीय पौधे के रूप में विश्व विख्यात है. इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है. इसके अर्क का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन और त्वचा क्रीम, मधुमेह के इलाज, रक्त शुद्धि, मानव रक्त में लिपिड स्तर को घटाने किया जाता है. इसके पौधे में मौजूद यौगिक पॉलीफेनोल्स की वजह से यह त्वचा और बालों की गुणवत्ता में सुधार के उपयोग में लाया जाता है.अगर भारत मे आयुर्वेद को बढ़ावा देना है तो हर्बल खेती को बढ़ावा देना होगा.

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