नालंदा में मनीष मौत का मामला एक बार फिर गरमा गया है. परिजन इंसाफ की मांग कर रहे हैं. परिजनों का आरोप है कि इलाज में लापरवाही की वजह से इंजीनियर मनीष की मौत हो गई. वे इसकी सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं
कल्याण बिगहा जाने से रोका गया
मनीष मौत मामले की सीबीआई जांच की मांग को लेकर जस्टिस फॉर मनीष एक्शन टीम के सदस्य सत्याग्रह के लिए बड़ी संख्या में मुख्यमंत्री के पैतृक गांव कल्याणबीघा जुटे थे. लेकिन जिला पुलिस ने इसे गैर कानूनी करार देकर अधिकांश सत्याग्रहियों को कल्याणबीघा से एक किलोमीटर पहले ही रोक दिया।
सड़क पर बैठ गए सत्याग्रही
हरनौत और बहादुरगंज से जाने वाली सड़कों से जाने वाले सत्याग्रहियों को रोकने के लिए पुलिस का कड़ा पहरा लगा था। करीब पांच हजार सत्याग्रहियों को कल्याणबीघा में स्व. रामलखन वाटिका के निकट पहुंचने से रोका गया। जिन्हें जहां रोका गया, वे वहीं सड़क किनारे सत्याग्रह पर बैठ गए। सरकार एवं मुख्यमंत्री से मामले की सीबीआई जांच की मांग की।
सत्याग्रह हर देशवासी का हक
मृतक मनीष के पिता और अधिवक्ता अजित कुमार ने कहा कि मेरे पुत्र की मौत इलाज में की गई लापरवाही की वजह से हुई। उन्होंने कहा कि इसकी सीबीआई जांच होनी चाहिए ताकि मेरे पुत्र को न्याय मिल सके तथा कोई और अपना पुत्र इस तरह न खो सके। उन्होंने कहा कि सत्याग्रह करना हर देशवासी का हक है। इसे रोकना नाजायज है। सरकार और शासन इंसाफ की आवाज को दबाना चाह रही है। लेकिन न्याय के लिए लड़ाई जारी रहेगी।
गांव-गांव घुमकर जुटाया था जनसमर्थन
बता दें, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैतृक गांव कल्याणबीघा में उनके पिता की स्मृति वाटिका के सामने सत्याग्रह करने का कार्यक्रम पहले से तय था। जन समर्थन एवं न्याय के लिए दिवंगत मनीष के पिता अधिवक्ता अजित कुमार व कई अन्य लोग टोलियों में बंटकर गांव-गांव घूमे थे। यही वजह रही कि अच्छी-खासी संख्या में लोगों का जुटान हो गया।
क्या है पूरा मामला
दो अगस्त को मनीष के जांघ की हड्डी टूट गई थी। उन्हें बिहारशरीफ बड़ी पहाड़ी एनएच -20 पर स्थित डॉ अमरदीप नारायण के अस्पताल नालन्दा हड्डी एवं रीढ़ सेंटर प्राइवेट लिमिटेड में भर्ती कराया गया। परिजनों का आरोप है कि वहां न तो सही इलाज हुआ और न ही उन्हें मरीज के हालात की जानकारी दी गई। जब हालत बिगड़ गई तो 6 अगस्त को पटना के पारस अस्पताल में रेफर कर दिया। हालत अधिक खराब होने के कारण पारस अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाया जा रहा था, इसी बीच उसकी मौत हो गई। इनका दावा है कि रुपए की लालच में चिकित्सक ने मरीज की बिगड़ती हालत के बावजूद चार दिनों तक आइसीयू में रखा
आईएमए कर चुका है खारिज
परिजनों की शिकायत के बाद नालंदा जिला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने मामले की जांच की थी. उनका कहना था कि मनीष के इलाज में किसी तरह की कोताही नहीं बरती गई. जबकि अधिवक्ता संघ इस मामले में न्यायिक जांच की मांग कर रहा है।