बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर नीतीश सरकार को फटकार लगाई है । सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि इसके कारण हजारों लोग जेल में बंद हैं और न्यायिक प्रणाली जाम हो गई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह चिंता का विषय है। जिसके बाद बिहार सरकार ने बदलाव लाने की बात कही ।
नीतीश सरकार का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में मंगलवार को कैबिनेट की बैठक हुई । जिसमें शराबबंदी कानून में संशोधन किया गया है। नीतीश सरकार ने बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद (संशोधन) अधिनियम 2022 को स्वीकृति दी गयी. जिसे विधानसभा में पेश किया जाएगा।
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नए कानून में क्या क्या बदलाव हुए
1- इस अधिनियम में संशोधन होने के बाद शराब पीनेवाले लोगों को जमानत के लिए अदालत जाने की आवश्यकता नहीं होगी.
2- शराब पीते हुए पर पकड़े जाने पर उनको एक्सक्युटिव मजिस्ट्रेट के यहां से आर्थिक दंड लेकर जमानत दे दी जायेगी.
3- शराब पीनेवाले लोग जो पहली बार शराब पीते पकड़े गये तो उनको शराब बेचने वाले दुकानदार का नाम बताने पर मामूली फाइन लेकर जमानत दे दी जायेगी.
4- शराब के कारोबार में संलिप्त वाहनों का अब लैब रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद वीडियोग्राफी कराकर उसकी नीलामी की जायेगी. इसके पहले शराब के कारोबार में उपयोग लाये जानेवाले वाहनों को पकड़े जाने पर पहले राज्यसात करना पड़ता था. इसके कानूनी प्रक्रिया में विलंब होता था. अब इस प्रकार के वाहनों के नीलामी में कम समय लगेगा.
5- किसी वैसे वाहन जिनमें पहली बार शराब पकड़ी जाती है या उससे कारोबार नहीं किया जाता है तो उनके वाहन मालिक से एक निश्चित राशि लेकर छोड़ दिया जायेगा. जैसे किसी बस या निजी गाड़ी में एक दो बोतल शराब पकड़े जाने पर उससे फाइन लेकर छोड़ दिया जायेगा.
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विधानसभा में पेश किया जाएगा
बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद (संशोधन) अधिनियम 2022 को अब बिहार विधानसभा में पेश किया जाएगा। जहां चर्चा के बाद पास कर दिया जाएगा। विधानमंडल से पास होने के बाद ये कानून बन जाएगा ।
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2016 में शराबबंदी कानून लागू हुआ
बिहार में 2016 में शराबबंदी कानून लागू हुआ था जिसके तहत पूरे राज्य में उत्पादन, बिक्री और खपत पर रोक लगा दी गई थी। कानून में गंभीर अपराधों के लिए जुर्माने के साथ-साथ आरोपी की संपत्ति को जब्त करने के अलावा जेल की सजा का प्रावधान करता है। 2018 में कानून में संशोधन किया गया जिसके तहत कुछ प्रावधानों को कमजोर किया गया था। पीठ ने शुरुआत में कहा कि यह चिंता का विषय है कि पटना हाई कोर्ट के 16 न्यायाधीश जमानत के मामले निपटाने में लगे हैं।