स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने के साथ आ गई मौत.. पद्मभूषण बिंदेश्वर पाठक का निधन

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आज बिहार ने ही नहीं पूरी दुनिया ने एक होनहार बेटा खो दिया… बिहार के बेटे और सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक पद्मभूषण बिंदेश्वर पाठक का अचानक निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के AIIMS में आखिरी सांस ली.. बिंदेश्वर पाठक 80 साल के थे। बताया जा रहा है कि हर्ट अटैक की वजह से उनकी जान चली गई है।

तिरंगा फहराने के बाद मौत
कहा जाता है ना कि मौत कब किसे किस रुप में आकर ले जाएगी ये किसी को पता नहीं होता है। ऐसा ही कुछ पद्मभूषण बिंदेश्वर पाठक के साथ हुआ। वे पूरी तरह स्वस्थ थे। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर वे सुलभ इंटरनेशनल के केंद्रीय कार्यालय में तिरंगा फहराया। तिरंगा फहराने के बाद उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। बिंदेश्वर पाठक ध्वजारोहण के बाद गिर गए.. जिसके बाद वो कभी भी उठ ना पाए.. उन्हें AIIMS ले जाया गया,जहां उनका निधन हो गया।

पीएम ने जताया शोक
डॉ. बिंदेश्वर पाठक को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए साल 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उनके आकास्मिक निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर लिखा कि डॉ. बिंदेश्वर पाठक जी का निधन देश के लिए एक गहरी क्षति है। वो एक दूरदर्शी व्यक्ति थे जिन्होंने सामाजिक प्रगति और वंचितों को सशक्त बनाने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया। बिंदेश्वर जी ने स्वच्छ भारत के निर्माण को अपना मिशन बना लिया। उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन को जबरदस्त समर्थन प्रदान किया। हमारी विभिन्न बातचीत के दौरान स्वच्छता के प्रति उनका जुनून हमेशा दिखता रहा। उनका काम कई लोगों को प्रेरणा देता रहेगा। इस कठिन समय में उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएँ। शांति।

कल होगा अंतिम संस्कार
बिंदेश्वर पाठक के पार्थिव शरीर का कल हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार होगा। अंतिम संस्कार की प्रक्रिया दिल्ली में ही की जाएगी। कल सुबह 7 बजे दिल्ली के पालम इलाके के पास महावीर इनक्लेव स्थित सुलभ ग्राम में उनके शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। उसके बाद अंतिम संस्कार किया जाएगा।

बिहार के रहने वाले थे
डॉ. बिंदेश्वर पाठक मूल रूप से बिहार के रहने वाले थे। उनका जन्म वैशाली जिले रामपुर बाघेल गांव में हुआ था। उन्होंने मैला ढोने की प्रथा को ख़त्म करने के लिए बहुत प्रयास किए। उन्हें पहली बार 1968 में सफाईकर्मियों की दुर्दशा का एहसास हुआ, जब वे बिहार गांधी शताब्दी समारोह समिति के भंगी-मुक्ति (सफाईकर्मियों की मुक्ति) सेल में शामिल हुए।

सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की
बिंदेश्वर पाठक 1968 में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद बिहार गांधी शताब्दी समारोह समिति के भंगी-मुक्ति (मेहतरों की मुक्ति) प्रकोष्ठ में शामिल हुए, जिससे उन्हें भारत में मैला ढोने वाले समुदाय की दुर्दशा के बारे में पता चला। इस समुदाय की स्थिति में सुधार के लिए उन्होंने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना कर नागरिकों को स्वच्छ शौचालय की सुविधा देने की पहल थी। उनकी संस्था मानव अधिकार, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए काम करती है।

डिस्पोजल कम्पोस्ट शौचालय का आविष्कार किया
भारत में मैला ढोने की प्रथा के खिलाफ अभियान चलाने वाले बिंदेश्वर पाठक ने देश में स्वच्छता अभियान में अहम भूमिका निभाई। देश में शौचालय निर्माण विषय पर उन्होंने बहुत शोध किया। डॉ. पाठक ने सबसे पहले 1968 में डिस्पोजल कम्पोस्ट शौचालय का आविष्कार किया, जो कम खर्च में घर के आसपास मिलने वाली सामग्री से बनाया जा सकता है।यह आगे चलकर बेहतरीन वैश्विक तकनीकों में से एक माना गया। उनके सुलभ इंटरनेशनल की मदद से देशभर में सुलभ शौचालयों की शृंखला स्थापित की।

एक महिला को छूने पर उन्हें खिलाया गया था गोबर
बिंदेश्वर पाठक ने एक दैनिक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि बचपन में उनके घर में एक महिला बांस का बना सूप, डगरा और चलनी देने के लिए आती थी। जब वो लौटती, तो दादी जमीन पर पानी छिड़कतीं। मुझे आश्चर्य होता था कि इतने लोग आते हैं लेकिन दादी उन्हीं के लिए ऐसा क्यों करतीं? लोग कहते थे वह महिला अछूत है, इसलिए दादी पानी छिड़कती थीं ताकि वह जगह पवित्र हो जाए। मैं कभी-कभी उस महिला को छूकर देखता था कि क्या मेरे शरीर और रंग में कोई परिवर्तन होता है या नहीं? लेकिन कोई बदलाव नहीं पाया। एक बार दादी ने मुझे उनके पैर छूते हुए देख लिया। घर में कोहराम मच गया। सर्दी के दिन थे, दादी ने मुझे पवित्र करने के लिए गाय का गोबर खिलाया और गोमूत्र पिलाया। गंगा जल से स्नान करवाया। उस समय मेरी उम्र 7 साल थी, इसलिए छुआछूत की घटना को अधिक समझ नहीं पाया।

पाठक को जब सांठ ने दौड़ाया था
डॉ. पाठक ने अपने संस्मरण में ये भी बताया कि एक बार कुछ साथियों के साथ चाय पीने जा रहे थे, उस दौरान सांड ने एक बच्चे पर हमला कर दिया। आसपास के लोग और हम सब उसे बचाने के लिए दौड़े। इस दौरान भीड़ में से ही आवाज आई कि यह मैला ढोने वाले समुदाय की बस्ती का बच्चा है। यह सुनते ही लोग पीछे हो गए और बच्चे को छोड़ दिया। हम लोगों ने उसे उठाया और इलाज कराने के लिए दौड़े, लेकिन देर हो गई। हम उस बच्चे को बचा नहीं पाए। उन्होंने कहा कि इन दो घटनाओं ने मेरे जीवन पर गहरा असर डाला

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