कहा जाता है न कि भारत में तीन के ही पास शक्तियां हैं। देश में पीएम का, राज्य में सीएम का और जिले में डीएम का। लेकिन अब जल्द ही एक और नाम शामिल होने जा रहा है वो है पंचायत में मुखिया का। ग्राम पंचायत में मुखिया का पद पहले ही लोकलुभावन रहा है । पंचायत चुनाव में लोगों की नजर सबसे ज्यादा मुखिया पद को लेकर रहता है। पंचायत चुनाव में सबसे ज्यादा खून खराबा भी मुखिया पद के लिए ही होता है । गांव में भी लोग मुखिया जी को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं । क्योंकि ग्राम सरकार का सर्वोच्च पद मुखिया को ही माना जाता है। अब बिहार सरकार मुखिया के अधिकार में बढ़ोत्तरी करने जा रही है।
आत्मनिर्भर ग्राम सरकार की परिकल्पना
नगर निकायों की तरह अब सरकार ने पंचायतों को भी आत्मनिर्भर बनाने का काम शुरु कर दिया है। सरकार पंचायतों को अपने पैरों पर खड़ा करने और स्थानीय स्वशासन की अवधारणा को जमीन पर उतारने के लिए कई तरह की कार्रवाई कर रही है। इसके तहत मुखिया टैक्स वसूलेंगे और अपनी पंचायत का विकास करेंगे।
टैक्स वसूलने का अधिकार
सरकार अब गांवों की जमीन से वसूल गए राजस्व का उपयोग गांवों के विकास पर ही करना चाहती है । इसलिए अब सरकार ने मुखिया को ग्रामीण इलाकों में टैक्स वसूलने का अधिकार देने जा रही है । ऐसे में गांवों लगने वाले मोबाइल टावर, पेट्रोल पंप,गैस एजेंसी,कृषि हाट और दुकानों से भी टैक्स वसूलने का जिम्मा भी मुखिया को देने जा रही है। साथ ही जमीन से मालगुजारी भी जल्द ही मुखिया के जरिए ही वसूले जाएंगे।
पंचायतों के अधिकार बढ़ाने की पीछे मकसद
दरअसल, बिहार में गांवों की जमीन से हर साल 9.68 करोड़ के राजस्व की वसूली होती है । साथ ही मोबाइल टावर लगाने के लिए एनओसी (अनुमति शुल्क) देने के लिये प्रति टावर 10 हजार की रेट से 9.68 करोड़ वसूले गये हैं। ऐसे में सरकार इन पैसों को गांवों के विकास में ही खर्च करना चाहती है ।वर्तमान में पंचायतों में पेयजल, कच्चे सड़कों की ब्रिक सोलिंग, आंगनबाड़ी केन्द्रों का निर्माण, नाला निर्माण, सड़कों-नालों-पोखरों-कुओं आदि की सफाई, मृत जानवरों एवं लावारिश शवों का निष्पादन, पुस्तकालयों के सुदृढ़ीकरण, सार्वजनिक स्थलों पर सोलर लाईट लगाने समेत विकास के सभी काम सरकारी अनुदान की बदौलत ही हो रहे हैं।ऐसे में ग्राम पंचायतों के पास टैक्स वसूलने का पूरा ढांचा खड़ा खड़ा कर विकास करना चाहती है ।