
सिन्धु घाटी सभ्यता आद्य ऐतिहासिक काल की सभ्यता थी। इसे आद्य ऐतिहासिक सभ्यता इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि सिन्धु लिपि को अब तक पढ़ा नहीं जा सका है ।
सिन्धु घाटी सभ्यता के पुरातात्विक स्रोत
-टेरिकोटा जिसे मृण्मूर्तियां भी कहा जाता है
-चक्र की आकृति
-महल और खंडहर
-मेसोपोटामिया से प्राप्त बेलनाकार मुहर
-लोथल से प्राप्त एक छोटा बेलनाकार मुहर
-मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक वाट
-लोथल से प्राप्त हाथी दांत के माप का पैमाना
सिंधु घाटी सभ्यता का उदभव के बारे में जानिए
सिंधु घाटी सभ्यता के उदभव को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों की अलग-अलग राय है । कोई इसे मेसोपोटामिया की सभ्यता का प्रभाव बताते हैं तो कोई इसे ईरानी-ग्रामीण संस्कृति से उत्पन्न कहते हैं.. जबकि कुछ इतिहासकार इसे सोथी संस्कृति का हिस्सा बताते हैं। अब आपको इनके बारे में डिटेल से बताते हैं
पहली विचारधारा– मेसोपोटामिया के प्रभाव से हुई सिंधु सभ्यता की उत्पति
इस विचारधारा के पक्ष में इतिहासकार हैं- मॉर्टीमर व्हीलर, गॉर्डन चाइल्ड, लियोनार्ड बूली, डी.डी कौशांबी, क्रेमर
–डी डी कौशांबी का कहना है कि मिश्र, मेसोपोटामिया और सिंधु सभ्यता के जनक एक ही मूल के व्यक्ति थे
जबकि क्रेमर का कहना है कि करीब 2400 ईसा पूर्व में मेसोपोटामिया से ही लोग यहां आए और यहां की परिस्थिति के मुताबिक अपनी संस्कृति में परिवर्तन कर सिंधु सभ्यता का निर्माण किया ।
परन्तु इस विचारधारा के विपक्ष में भी की दलीलें हैं
मेसोपोटामिया में स्पष्ट रूप से पुरोहितों का शासन था, जबकि सिंधु सभ्यता पुरोहितों के शासन का स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है।
मेसोपोटामिया की लिपि कीलनुमा थी, जबकि सिंधु सभ्यता के लोग चित्रात्मक लिपि का प्रयोग करते थे ।
सिंधु सभ्यता में बड़े पैमाने पर पक्के ईटों का प्रयोग हुआ है । जबकि मेसोपोटामिया में ऐसा नहीं देखा गया है ।
दूसरी विचारधारा- ईरानी-बलूची ग्रामीण संस्कृति से उत्पति
इस विचारधारा के पक्ष में इतिहासकार हैं- ब्रिजेट एवं अलचिन, फेयर सर्विस, रोमिला थापर
इनका मानना है कि ईरानी-बलूची संस्कृति से ही सिंधु सभ्यता का उदभव हुआ है और इनका ही भारतीयकरण होता रहा है ।
फेयरसर्विस के मुताबिक धर्म इस संस्कृति का प्रमुख आधार था जिसके कारण इस संस्कृति के नगरीकरण की दिशा में तीव्र विकास हुआ ।
तीसरी विचारधारा- देसी प्रभाव वाले सोथी-संस्कृति से उत्पति
इस विचारधारा के पक्ष में इतिहासकार हैं- अमलानंद घोष, धर्मपाल अग्रवाल, रेमंड
इन इतिहासकारों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता का भारत की धरती से हुआ था। राजस्थान के कुछ भागों से प्राक-हड़प्पाकालीन मृदभांड प्राप्त हुए हैं । अमलानंद घोष ने 1953 में सर्वप्रथम बीकानेर क्षेत्र में सोथी संस्कृति की खोज की थी। उनके मुताबिक सोथी संस्कृति ग्रामीण संस्कृति थी और इसी का नगरीकरण सिंधु सभ्यता के रुप में हुई।
1826 ईस्वी में चार्ल्स मेसन नामक इतिहासकार ने हड़प्पा नामक गांव का दौरा किया था जबकि 1872 ईस्वी में कनिंघम ने इस प्रदेश का दौरा किया।
तीसरी सहस्राबदी ईसा पूर्व मध्य बहुत से छोटे-छोटे गांव बलूचिस्तान और अफगानिस्तान में बस गए। बलूस्चितान में किली गुल मोहम्मद और मेहरगढ़ में जबकि अफगानिस्तान में मुंडीगाक में 5000 ईसा पूर्व कृषि का साक्ष्य प्राप्त होता है ।
सिंधु घाटी सभ्यता के विकास के चरण
क. नवपाषाण काल( 5500-3500 ईसा पूर्व) – इस काल में बलूचिस्तान और सिंधु के मैदानी भागों में स्थित मेहरगढ़ और किली गुल मोहम्मद जैसी बस्तियां उभरीं और खेती की शुरुआत हुई साथ ही स्थायी गांव भी बसे
ख. पूर्व हड़प्पा काल (3500-2600 ईसा पूर्व) – इस काल में तांबा, चाक एवं हल का प्रयोग होने लगा। अन्नागारों का भी निर्माण किया जाने लगा था। अपने घरों की सुरक्षा के लिए ऊंची-ऊंची दीवारें भी बनाई जाने लगी थी । साथ ही इस काल खंड में सुदूर व्यापार के भी संकेत मिलने लगे।
ग. पूर्ण विकसित हड़प्पा युग ( 2600-1800 ईसा पूर्व)– इसका संपूर्ण विकसित क्षेत्र 12,99,600 वर्ग किलोमीटर का था । रंगनाथ राव के मुताबिक यह पूरब से पश्चिम 1600 किमी और उत्तर से दक्षिण 1100 किमी में फैला था । अभी उत्खनन में 1000 स्थल में मात्र 6 स्थल नगर हैं । उत्तरी क्षेत्र जम्मू में मांडा, दक्षिण में दैमाबाद, पश्चिम में सुत्कागेंडोर और पूरब में सहारनपुर का हुलास है । अब इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत के पंजाब, सिंध, बलुचिस्तान, उ.प.सीमांत, बहावलपुर,राजस्थान, हरियाणा, गंगा-यमुना दोआब, जम्मू, गुजरात और उत्तरी अफगानिस्तान से प्राप्त हैं ।