नालंदा लोकसभा सीट पर कौशलेंद्र कुमार का तीर चलेगा या अशोक आजाद के टेलिफोन की घंटी बजेगी. ये तो 23 मई की मतगणना के बाद ही साफ होगा. यहां 19 मई को वोट डाले जाएंगे. दोनों पार्टियां अपनी अपनी जीत का दावा कर रही है. लेकिन सवाल ये उठता है कि मतदाताओं का रुझान किस ओर है.
नालंदा में इस बार मुकाबला काफी दिलचस्प है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उनके ही गढ़ में मात देने के लिए महागठबंधन ने चक्रव्यूह रचा है. इस चक्रव्यूह में अपने ‘अभिमन्यु’ कौशलेंद्र कुमार को फंसता देख खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘अर्जुन’ बनकर मैदान में उतर आए.
कभी बिहार की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार को इस बात के संकेत मिल चुके थे कि उनका ‘अभिमन्यु’ चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस चुका है. वो सात विधानसभा क्षेत्र रुपी चक्र में से एक से भी बाहर नहीं निकल पाएगा. ऐसे में उन्होंने बिना समय गवाएं. अपने विकास रुपी गांडीव को लेकर नालंदा में कूद पड़े.
महाभारत में जैसे अर्जुन को ही चक्रव्यूह का तोड़ मालूम था. उसी तरह नीतीश कुमार भी नालंदा की हर नब्ज को अच्छी तरह से समझते हैं. इससे पहले की विरोधी चक्रव्यूह रचना को और तीखा कर पाते. वे मैदान में उतर आए
नांलदा सीट नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठा की सीट है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जदयू 17 में से 16 जीत गई और नालंदा सीट हार गई तो नीतीश कुमार की मिट्टी पलीद हो जाएगी. नीतीश कुमार भी राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं. वो इस जीत हार के मायने को अच्छी तरह से समझते हैं ऐसे में उन्होंने अपनी पूरी ताकत नालंदा में लगा दी
नालंदा लोकसभा सीट पर महागठबंधन का जातीय चक्रव्यूह नीतीश कुमार को परेशान कर रहा है. ऐसे में उन्होंने चंद्रवंशी समाज के वोट में सेंधमारी को रोकने के लिए चंद्रवंशी समाज के बड़े नेता और सूबे के मंत्री प्रेम कुमार से चुनाव प्रचार करवाया. तो वहीं, पासवान वोटरों को अपनी ओर लाने के लिए रामविलास पासवान और चिराग पासवान से चुनाव प्रचार करवाया. इतना ही नहीं बीजेपी वोटरों को अपने पक्ष में कराने के लिए डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी से रोड शो करवाया. साथ ही नीतीश कुमार हर विधानसभा क्षेत्र में खुद चुनाव प्रचार किया. साथ ही उनके हर चुनाव प्रचार में हीरा बिंद और रामनाथ ठाकुर जैसे अतिपिछड़ी जाति के नेता साथ रहे. इतना ही नहीं कोयरी वोटरों में सेंध को रोकने के लिए स्थानीय विधायक डॉक्टर सुनील को पूरा सम्मान दिया.
नीतीश कुमार इन समीकरणों के सहारे चक्रव्यूह रचना में एक दरवाजे से अगले दरवाजे की ओर तो बढ़ते जा रहे हैं. लेकिन आखिरी के दो दरवाजे उनकी शक्ति और महागठबंधन की कमजोर व्यूह रचना की वजह से टूटता दिख रहा है .
नालंदा के वोटरों से बात करने पर ये साफ हो गया कि नालंदा में कौशलेद्र कुमार की जीत का रास्ता नीतीश कुमार के नल के सहारे ही संभव है. नालंदा के अलग-अलग हिस्सों के वोटरों से बात करने के बाद हमने महसूस किया कि गांव में महिला वोटर नीतीश कुमार के नल जल योजना से काफी प्रभावित हैं. वो कहती हैं कि ”नीतीश कुमार घरवा में नल लगा देलथिन हें, जेकर कारण अब हमरा के पानी लावे लागी कुइयां और बाहर चापाकल पर न जाइए पड़ है” अधिकतर महादलित महिला वोटरों के मुंह से हमने ये बातें सुनी और उन्हें समझने की कोशिश की. जिससे ये साफ है कि कौशलेंद्र कुमार की जीत का रास्ता नीतीश कुमार के नल जल योजना के रास्ते ही संभव है.
कौशलेंद्र कुमार की जीत का आखिरी दरवाजा महागठबंधन के कमजोर व्यूह रचना की वजह से साफ होता दिख रहा है. हमने क्षेत्र के कई वोटरों से बात किया . अधिकतर लोगों की शिकायत कौशलेंद्र कुमार से थी. लेकिन आखिर में लोग स्थानीय बनाम बाहरी के मुद्दे पर आकर अटक गए. कहने लगे कौशलेंद्रा त एहिजे के हथिन और अशोकवा त बाहरी हथिन उ जीतला के बाद कहां अथिन.. यानि बाहरी और स्थानीय के मुद्दे पर कौशलेंद्र कुमार को न चाहते हुए भी लोग वोट करने को मजबूर हैं. महागठबंधन के नेता भी इस बात को मानते हैं कि इसी जाति के किसी स्थानीय नेता को टिकट दिया जाता तो तस्वीर कुछ औऱ होती.. वो मान रहे हैं कि बाहरी होने की वजह से महागठबंधन को नुकसान हो रहा है
यानि कुल मिलाकर कहे तों अपनी जिन वजहों से कौशलेंद्र कुमार लोकतंत्र के महारण में घिरे दिख रहे थे. उससे नीतीश कुमार जैसे कुशल धुरंधर विकास और जातीय समीकरण के गणित के जरिए बाहर निकालने में सफल हो सकते हैं ।