नवादा लोकसभा सीट पर चुनाव प्रचार खत्म हो गया है । अब 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगें। नवादा लोकसभा सीट पर मुकाबला महागठबंधन और एनडीए में नहीं बल्कि दो बाहुबलियों में है। आरजेडी ने बाहुबली राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं, एलजेपी ने बाहुबली सूरजभान के भाई चंदन कुमार को मैदान में उतारा है । अब सवाल ये उठता है कि नवादा की जंग कौन जीतेगा ? क्या चंदन के माथे पर लगेगा जीत का टीका ? या विभा देवी का होगा राजतिलक? इस समझने के लिए नवादा का समीकरण समझना जरुरी है।
मतदाताओं की संख्या
नवादा संसदीय क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 13,97,512 है. जिनमें से 6,52,177 महिला मतदाता और 7,45,335 पुरुष मतदाता हैं. 2009 में परिसीमन के बाद बरबीघा नवादा में जुड़ा और अतरी हट गया। बरबीघा भूमिहारों का गढ़ माना जाता है और इसके जुड़ने के बाद यहां का समीकरण बदल गया। यादवों का गढ़ कहे जाने वाले अतरी क्षेत्र नवादा से हटने के बाद यहां राजद की स्थिति कमजोर हुई। नवादा में मुस्लिम और ओबीसी वोटरों की भी अच्छी तादाद है।
किस विधानसभा सीट पर किसका कब्जा
नवादा लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती है- बरबीघा, रजौली, हिसुआ, नवादा, गोबिंदपुर और वारसलीगंज. इनमें से रजौली सुरक्षित सीट है. इन छह सीटों में से दो सीट हिसुआ और वारसलीगंज विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि रजौली और नवादा पर आरजेडी का. वहीं, गोविंदपुर और बरबीघा विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। यानि छह में से चार पर महागठबंधन का कब्जा है । इस हिसाब से राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी का पलड़ा भारी दिख रहा है। हालांकि ये नतीजे साल 2015 के विधानसभा चुनाव के हैं जब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू कांग्रेस और आरजेडी के साथ थी। अब नीतीश कुमार एनडीए के साथ हैं ऐसे में समीकरण बदल चुका है.
जातीय समीकरण क्या कहता है
नवादा लोकसभा सीट को भूमिहार बहुल माना जाता है. यानि यहां सबसे ज्यादा भूमिहार वोटर हैं. जबकि यादव वोटर दूसरे स्थान पर हैं. एलजेपी उम्मीदवार चंदन कुमार भूमिहार जाति से हैं और अगर भूमिहारों का वोट उन्हें मिल जाता है तो वे बाजी मार सकते हैं। वहीं, आरजेडी की विभा देवी यादव हैं। ऐसे में अगर यादव और मुस्लिम वोटर एकजुट होकर वोट देती है और भूमिहार वोटों में बिखराव होता है तो विभा देवी चंदन कुमार को पटखनी दे सकती हैं। आपको यहां बता दें कि पिछली बार बीजेपी के गिरिराज सिंह ने आरजेडी के राजबल्लभ यादव को करीब डेढ़ लाख वोटों से हराया था।
मैदान में 13 उम्मीदवार
नवादा लोकसभा सीट पर इस 13 उम्मीदवार मैदान में हैं। आरजेडी और एलजेपी के अलावा बहुजन समाज पार्टी की ओर से विष्णु देव यादव चुनाव लड़ रहे हैं. पीपल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डेमोक्रेटिक) की ओर से आदित्य प्रधान चुनाव लड़ रहे हैं. राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल की ओर से मुकीम उद्दीन चुनाव लड़ रहे हैं. शिवसेना ने भी यहां अपना उम्मीदवार उतारा है. शिवसेना की ओर से रंगनाथ मैदान में हैं. मूलनिवासी पार्टी से विजय राम चुनाव लड़ रहे हैं. निर्दलीय प्रत्याशियों में राजेश कुमार, तुलसी दयाल, नरेश प्रसाद, निवेदिता सिंह, प्रोफेसर केबी प्रसाद, राकेश रौशन चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे ये सब आरजेडी और एलजेपी का खेल बिगाड़ सकते हैं
स्थानीय मुद्दे
1992 से लेकर अब तक हुए चुनावों में चीनी मिल चालू करवाना यहां से स्थानीय मुद्दों में से एक है। केंद्रीय विद्यालय, परमाणु बिजली घर प्रोजेक्ट, शिक्षण संस्थान के अलावा रोजगार की वजह से लोगों का पलायन काफी प्रमुख मुद्दा है। नवादा की 22 लाख आबादी में से 4 लाख लोग रोजगार के लिए बाहर हैं। खेती के अलावा यहां रोजगार का कोई साधन नहीं है।
दोबारा नहीं देती है मौका
नवादा संसदीय सीट के वोटरों का इतिहास ऐसा रहा है कि यहां किसी भी उम्मीदवार को जनता एक बार से ज्यादा बार मौका नहीं देती है. अब तक के 16 लोकसभा चुनावों में सिर्फ एक उम्मीदवार कुंवर राम को ही यहां की जनता ने दोबारा मौका दिया है. कुंवर राम नवादा से 1980 और 1984 में कांग्रेस के टिकट पर जीतकर लोकसभा गए थे. जानकारों का कहना है कि 1984 में कुंवर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सहानुभूति लहर में जीत गए थे।
वोटरों को भाते हैं बाहरी नेता, अब तक के 16 सांसद में 13 बाहरी
इस सीट पर सबसे अधिक छह बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की। 1957 में निर्वाचित सत्यभामा देवी को छोड़ दें तो पांच बार बाहरी उम्मीदवारों को कांग्रेस ने मौका दिया। भाजपा ने चार बार जीत दर्ज की। चारों बार बाहरी नेताओं को टिकट दिया गया था। इनमें पटना के कामेश्वर पासवान, बेगूसराय के डॉ. भोला सिंह, दरभंगा के डॉ. संजय पासवान और लखीसराय के गिरिराज सिंह हैं। राजद से दो सांसद निर्वाचित हुए। इनमें गया से मालती देवी, जबकि हाजीपुर से वीरचंद्र पासवान थे। सीपीएम के निर्वाचित होने वाले सांसदों में से एक प्रेम प्रदीप नालंदा के थे। बीएलडी से नथुनी राम निर्वाचित हुए थे, वो भी बाहर के थे।
तीन सांसद बने स्थानीय, पृष्ठभूमि अलग-अलग
नवादा में तीन बार स्थानीय सांसद निर्वाचित हुए। 1957 में कांग्रेस के टिकट पर सत्यभामा देवी निर्वाचित हुई थी। दूसरी बार, 1967 में महंथ डॉ. सूर्यप्रकाश नारायण पुरी निर्वाचित हुए। वह कांग्रेस से चुनाव लड़ना चाहते थे। टिकट नहीं मिला, तो निर्दलीय लड़े। 1991 में सीपीएम के प्रेमचंद राम निर्वाचित हुए।
कामेश्वर ने खुलवाया था भाजपा का खाता
1996 में इस सीट पर भाजपा का तब खुला जब कामेश्वर पासवान सीपीएम प्रत्याशी प्रेम चंद्रराम को हराकर लोकसभा पहुंचे। 1996 में नवादा से सांसद बनने से पहले वे बिहार सरकार में मंत्री और राज्यसभा सदस्य रह चुके थे। भाजपा ने इस सीट पर चार बार जीत का परचम लहराया।
नवादा पर एक नजर-
साल जीते हारे
1952 ब्रजेश्वर प्रसाद(कांग्रेस) गोपाल कृष्ण महाजन(एसपी)
1957 सत्यभामा देवी(कांग्रेस) रामधानी दास
1962 रामधानी दास(कांग्रेस) ब्रजकिशोर सिंह(स्वतंत्र)
1967 एमएसपीएन पुरी(निर्दलीय) जीपी सिन्हा(कांग्रेस)
1971 सुखदेव प्रसाद वर्मा(कांग्रेस) सूर्य प्रकाश नारायण(निर्दलीय)
1977 नथुनी राम(बीएलडी) महाबीर चौधरी(कांग्रेस)
1980 कुंवर राम(कांग्रेस) प्रेम प्रदीप(सीपीएम)
1984 कुंवर राम(कांग्रेस) प्रेम प्रदीप(सीपीएम)
1989 प्रेम प्रदीप(सीपीएम) कामेश्वर पासवान(भाजपा)
1991 प्रेम चंद राम(सीपीएम) महावीर चौधरी(कांग्रेस)
1996 कामेश्वर पासवान(भाजपा) प्रेम चंद राम(सीपीएम)
1998 मालती देवी(राजद) कामेश्वर पासवान(भाजपा)
1999 संजय पासवान(भाजपा) विजय कुमार चौधरी(राजद)
2004 वीरचंद्र पासवान(राजद) संजय पासवान(भाजपा)
2009 भोला सिंह(भाजपा) वीणा देवी(लोजपा)
2014 गिरिराज सिंह(भाजपा) राजबल्लभ प्रसाद(राजद)