पहली कहानी
मोहम्मद अली जिन्ना एक काठियावाड़ी राजपूत थे। उनका खानदान गुजरात के काठियावाड़ से पाकिस्तान के कराची शिफ्ट कर गया था
दूसरी कहानी
मोहम्मद अली जिन्ना के पिताजी का नाम झीणाभाई पूंजा है। जबकि माता जी का नाम मीठीबाई है यानि जिन्ना के पिता झीणाभाई औऱ माता मीठीबाई। जिन्ना का खानदान काठियाबाड़ी राजपूत था ।
तीसरी कहानी
जिन्ना के पिताजी झीणाभाई पूंजा एक कमीशन एजेंट थे यानी बंदरगाहों पर सामान उतारने और लादे जाने के दौरान उन्हें कमीशन मिलता था। बाद में सूती कपड़े से लेकर मसाला तक के व्यापार में इनकी धाक ही बन गई और इसी सिलसिले में झीणाभाई-मिठीबाई कराची गए और वहीं बस गए
चौथी कहानी
जिन्ना के जन्मदिन को लेकर भी शुरुआत में विवाद था। ब्रिटिश दस्तावेज के मुताबिक जिन्ना का जन्म 20 अक्टूबर 1875 को हुआ था। लेकिन जिन्ना की जीवनी लिखने वाली सरोजनी नायडू ने उनके जन्म की तारीख 25 दिसंबर 1876 बताया था। नायडू ने जिन्ना की जीवनी लिखी थी इसलिए बाद में इसे ही सही मान लिया गया
पांचवीं कहानी
जिन्ना का पूरा परिवार शुरुआत में गुजराती बोलता था, लेकिन व्यापार-कमीशन में होने की वजह से परिवार ने सिंधी-कच्छी भी सीख ली। शुरुआत में तो भाई-बहनों के नाम भी गुजराती तर्ज पर ही रखे गए । मतलब सबके नाम के पीछे भाई लगा होना, जैसे झीणाभाई । उसी तरह सरनेम में पूंजा लगा होना।
छठी कहानी
जिन्ना का परिवार कराची शिफ्ट हो गया था और जिन्ना का जन्म कराची में ही हुआ था इसलिए जिन्ना की शुरूआती पढ़ाई के लिए सिंध मदरसा-ऊल-इस्लाम में हुआ। इसलिए धीरे-धीरे जिन्ना के सातों भाई-बहनों का नाम भी बदल गया । सबके नाम मुस्लिम हो गए।
सातवीं कहानी
अकबर एस अहमद ने अपनी किताब ‘जिन्ना, पाकिस्तान एंड इस्लामिक आइडेंटिटी’ में लिखा है कि जिन्ना के दादा प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर ने मछली का कारोबार करना शुरू किया था। जिसमें उनको बहुत फायदा हुआ । लेकिन काठियावाड़ी वैष्णव होते हैं, मांस मछली से दूर रहते हैं, इसलिए उनकी जातिवालों ने कहा कि अगर मछली का धंधा बंद नहीं किया तो जाति से बाहर कर देंगे। इसके बाद जिन्ना के दादा ने धंधा बंद नहीं किया और टकराव बढ़ता गया। जिन्ना के पिता ने अपनी जाति में लौटने की बहुत कोशिश की लेकिन उनके लिए दरवाजे बंद ही रहे. आखिरकार जिन्ना के पिता झीणाभाई पूंजा ने सिंध इस्लाम अपना लिया और स्कूल में बच्चों के नाम बदलते चले गए।
आठवीं कहानी
जिन्ना की शुरुआती पढ़ाई बबई के गोकुलदास तेज प्राथमिक स्कूल में हुई थी। उसके बाद कराची के क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल में पढाई की। जिन्ना ने मैट्रिक की परीक्षा बंबई विश्वविद्यालय से पास की।
नौंवी कहानी
जिन्ना के पिता चाहते थे कि उनका बेटा क्लर्क बने लेकिन जिन्ना किसी भी कीमत पर क्लर्क नहीं बनना चाहते थे। उनकी दिलचस्पी ड्रामा और वकालत में थी। अपने सपने को पूरा करने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना ने Lincoln’s Inn में लॉ की पढ़ाई की। आज भी लंदन के Lincoln’s Inn में जिन्ना की आदमकद तस्वीर लगी हुई है
दसवीं कहानी
लंदन में पढ़ाई के दौरान ही जिन्ना अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के संपर्क में आए। इसी दौरान उन्होंने गोखले से राजनीति का ककहरा सीखा।
11वीं कहानी
लंदन में दादा भाई नौरोजी ब्रिटिश संसद के लिए चुनाव लड़ रहे थे। इस चुनाव का प्रबंधन गोपाल कृष्ण गोखले के पास था और फिरोजशाह मेहता उनके लिए जी-जान से प्रचार में लगे थे। तब मोहम्मद अली जिन्ना ने भी एक गुजराती की हैसियस से फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी का खूब प्रचार किया।
12वीं कहानी
साल 1905 में लार्ड कर्जन ने फूट डालो और शासन करो की नीति के तहत बंगाल विभाजन का प्लान लाया गया। इसके लिए उसने ढाका के नवाब ख्वाजा सलिमुल्लाह को शिमला बुलाया । जिसमें एक ज्ञापन पर टाइप करवाया गया। जिसमें जिन्ना ने लिखवाया कि जहांपनाह हिन्दुस्तान की किस्मत पर कोई फैसला लेने से पहले मुसलमानों के भविष्य का ख्याल रखा जाए। शब्द पर ध्यान दीजिएगा…मुसलमानों के भविष्य।
13वीं कहानी
इसके साल भर बाद ही साल 1906 में मुस्लिम लीग का गठन हो गया। जो कांग्रेस के बराबरी का संगठन बना। जिसने कौम के हक़-हकूक की जगह मुसलमानों के हक की लड़ाई को मुद्दा बनाया। शहर-शहर कांग्रेस की तर्ज पर ही मुस्लिम लीग के भी अधिवेशन होने लगे।
14वीं कहानी
गांधी जी और जिन्ना दोनों के राजनीतिक गुरु एक ही थे । यानि गोपाल कृष्ण गोखले । गोखले ने चंपारण सत्याग्रह के लिए पहले जिन्ना को कहा था । लेकिन जिन्ना ने कहा कि ऐसे आम लोगों की समस्याओं को सुलझाया नहीं जा सकता है।
15वीं कहानी
जिन्ना वैभवशाली जीवन जीना चाहते थे। वो एक सॉफिस्टिकेटेड लाइफ जीना चाहते थे। जिसमें पार्टी, शराब, और लैविस लाइफ ज्यादा हावी था । मतलब जिन्ना…खुद को भीड़ से अलग रखना और दिखना चाहते थे…वो भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे। वो लोगों की समस्या का कानूनी हल बताते थे।
16वीं कहानी
जिन्ना को कानून को अच्छी समझ थी इसलिए बड़े अंग्रेज ऑफिसर्स भी उनका सम्मान करते थे । उस दौर में जिन्ना जैसे अंग्रेजी शायद ही कोई भारतीय बोल पाता था। वो ब्रिटिश फोनेटिक्स में अंग्रेजी बोलते थे । इस वजह से अंग्रेज उन्हें नौरोजी, गोखले और मेहता से ज्यादा पसंद करते थे ।
17वीं कहानी
सन 1915 के आसपास जिन्ना का कद गांधी जी से बहुत ज्यादा था। लेकिन चंपारण सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद गांधी का कद बहुत ज्यादा बढ़ गया। जिससे जिन्ना को जलन होने लगा
18वीं कहानी
जिन्ना ने कहना शुरू कर दिया कि सत्य, अहिंसा और सविनय अवज्ञा से स्वतंत्रता नहीं पाई जा सकती। आजादी के लिए संवैधानिक संघर्ष का रास्ता होना चाहिए। हालत ये हो गई कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गांधी के असहयोग आंदोलन के खिलाफ जिन्ना ने जमकर आवाज उठाई । उन्हें लगा कि इस नाम पर लोग उन्हें गांधी की बराबरी का नेता समझने लगेंगे। अंग्रेजों के बीच उनका कद और बढ़ जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
19वीं कहानी
मुस्तफा कमाल पाशा ने तुर्की में खलीफा को ख़त्म किया और सत्ता में इस्लामी कानून का चलन बंद किया तो दुनिया भर में आंदोलन हुए। भारत में भी इसे खिलाफत आंदोलन कहा गया। गांधी की अगुवाई में हुए इस आंदोलन का भी जिन्ना ने विरोध किया। कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में तो वो गांधी से बदसलूकी पर उतर आए। जबकि वो उनसे 7 साल छोटे थे। जिन्ना के मन में इतनी नफरत कैसे भरती चली गई।
20वीं कहानी
नागपुर अधिवेशन के बाद जिन्ना वापस लंदन लौट गए। और वहीं अपनी वकालत शुरू कर दी। करीब 10 सालों तक वो ऐशो आराम वाली जिंदगी जी
21वीं कहानी
अल्लामा इकबाल की अगुवाई में जमींदारों के एक दल ने जिन्ना को लंदन में एक मिन्नतनामा भिजवाया। जिन्ना पॉर्क खाते थे। खुलेआम शराब पीते थे। हुक्के के शौकीन थे। कोर्ट-टाई के बिना घर से बाहर नहीं निकलते। जो कार में तब तक इंतजार करते जब तक कोई गेट न खोल दे । वो जिन्ना दोबारा भारत लौटे ।
22वीं कहानी
10 साल बाद 1934 में भारत लौटा यह जिन्ना, बदला हुआ जिन्ना था। ये कांग्रेस का नहीं मुस्लिम लीग का जिन्ना था। हमेशा सूट-टाई में दिखने वाला जिन्ना नहीं बल्कि एक लंबे लबादे और चौड़ी मोहरी के पायजामे में खड़ा जिन्ना था।
23वीं कहानी
जिन्ना ये ठानकर लंदन से लौटा था कि हिन्दुस्तान को बांट करके ही चैन लेना है। जिन्ना को जब ये पता चल गया कि उन्हें ऐसी टीबी है, जो जानलेवा है और वो कुछ दिनों के मेहमान हैं तो उन्होंने अपनी निजी डॉक्टर पटेल से ये वादा लिया था कि आप यह बात किसी को नहीं बताएंगे। वो उस वक्त भी जानबूझकर लोगों के सामने सिगार पीते थे ताकि किसी को शक न जाए।
24वीं कहानी
जिन्ना बंटबारे के लिए बेचैन थे। 1934 के बाद जिन्ना इतने बदले-बदले हो गए कि उन्होंने हिन्दुस्तान के मुसलमानों को भड़काना शुरू किया। कहा जाता है कि जिन्ना किसी कीमत पर नेहरू की जगह पाना चाहते थे। वो खुद को कांग्रेस में नेहरू की जगह देखना चाहते थे। उनकी मंशा प्रधानमंत्री बनने की थी।
25वीं कहानी
जब जिन्ना को ये पता चला कि उनके पास सिर्फ दो साल बचे हैं। तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। वो पाकिस्तान को हर कीमत पर पाने के लिए बेचैन हो उठे और बात डायरेक्ट एक्शन डे तक आ गई। जिन्ना के भड़काने के बाद कोलकाता से लेकर पेशावर तक मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदुओं की लाशें बिछ गई।
और इस तरह मोहम्मद अली जिन्ना ने हिंदुस्तान का बंटवारा करवा कर पाकिस्तान के कायदे आजम बन गए या बाबा-ए-कौम हो सकते हैं लेकिन हिन्दुस्तान के लिए वो खलनायक थे…और वही रहेंगे। मुझे लगता है कि एएमयू के छात्र खुद ही अगर जिन्ना की तस्वीर हटा दें तो देश में एक मिसाल कायम हो जाएगी