बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू का चुनाव चिन्ह ‘तीर’ है। लेकिन क्या आपलोग जानते हैं कि जेडीयू ने किनके कहने पर अपना चुनाव चिन्ह तीर रखा है? आम लोग को तो छोड़ दीजिए जेडीयू के अधिकतर कार्यकर्ता और पार्टी के ज्यादातर नेताओं को भी इस बारे में नहीं मालूम होगा कि किनकी सलाह पर पार्टी का चुनाव तीर रखा गया था ? बाबा बलेश्वर दयाल कौन थे और वो कहां के रहने वाले थे ? जिनके कहने पर जेडीयू ने अपना चुनाव चिन्ह तीर रख लिया था। तो आपको बता दें कि मामा बालेश्वर दयाल के सुझाव पर ही जेडीयू ने अपना चुनाव चिह्न तीर रखा था। आदिवासी बहुल बांसवाड़ा में भीलों के उत्थान में लगे मामा बालेश्वर दयाल ने भीलों के तीर को ही जेडीयू का चिह्न बनाने का सुझाव दिया था। जेडीयू महासचिव केसी त्यागी का कहना है कि जब जनता दल से जेडीयू अलग पार्टी बन रही थी तो मामा बालेश्वर दयाल के सुझाव पर ही जेडीयू ने तीर को अपना चुनाव चिन्ह बनाया था।
कौन हैं मामा बालेश्वर दयाल
मामा बालेश्वर दयाल का जन्म 1905 में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवशंकर लाल था। समाज सेवा में रूचि होने की वजह से मामा बालेश्वर दयाल उत्तर प्रदेश से मध्यप्रदेश आ गए। मामा बालेश्वर दयाल ने 1937 में मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में ‘बामनिया आश्रम’ की नींव रखी। इसी साल यहां भीषण अकाल पड़ा था। अकाल पीड़ितों की मदद के लिए ईसाई मिशनरियां आगे आईं लेकिन मिशनरियों की रुचि सेवा में कम और धर्मांतरण में ज्यादा था। जिसके बाद मामा बालेश्वर दयाल ने पुरी के शंकराचार्य की सहमति से भीलों को क्रॉस के बदले जनेऊ दिलाना शुरू किया। इसके बाद वो भील जाति की कुरीतियों के खिलाफ अभियान खड़ा किया। मामा बालेश्वर दयाल ने आश्रम से प्रकाशित होनेवाली पत्रिका ‘गोबर’ का संपादन भी किया। बाद में वो राजस्थान में बांसवाड़ा और डुंगुरपुर जिलों में भीलों के उत्थान के लिए अपनी कर्मभूमि बना डाली।
समाजवादी थे मामा बालेश्वर दयाल
मामा बालेश्वर दयाल आर्य समाज और सोशलिस्ट पार्टी से भी जुड़े रहे। उनके आश्रम में सभी लोगों का आना-जाना होता था। यहां आनेवाले लोगों में सुभाषचंद्र बोस और आचार्य नरेंद्र देव जैसे लोग भी शामिल थे। इनके अलावा राजनीतिज्ञ भी इनके आश्रम में आते थे। जिसमें जयप्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया, चौधरी चरणसिंह, जार्ज फर्नांडीस जैसे नेता प्रमुख थे। समाजवादी विचारधारा के बालेश्वर दयाल द्वारा भीलों के लिए किये गये उनके कार्यों के कारण समाजवादियों के वोटबैंक के रूप में वह स्थापित हो गये। साल 1973 में वो अखिल भारतीय संयुक्त समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बने। बाद में वो मध्य प्रदेश से 1977 और 1984 के बीच राज्यसभा में सदस्य चुने गये। 26 दिसंबर, 1998 को उनका देहावसान हो गया। जिसके बाद उनके आश्रण में ही उनकी समाधि बनाई गई। मामा बालेश्वर दयाल के प्रतिमा के अनावरण के मौके पर तत्कालीन खाद्य मंत्री शरद यादव और रेलमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद थे