क्या आपको मालूम है कि नालंदा जिला में भी एक ऐसा मंदिर है जहां नवरात्र के दौरान महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। यानि नवरात्र के मौके पर महिलाएं उस मंदिर में पूजा-अर्चना नहीं कर सकती हैं। ये मंदिर पावापुरी के घोसरावां गांव में है। यहां मां आशापुरी मंदिर में नवरात्र के दौरान महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकती
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क्या है मान्यता
घोषरावां के इस मंदिर का नाम आशापुरी मंदिर है। मान्यता के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण पाल के शासक राजा घोष ने कराया था। उन्हीं के नाम पर इस गांव का नाम घोषरावां पड़ा। कहा जाता है कि बौद्ध काल में 18 सौ बौद्ध भिक्षु पहुंकर मन्नत मांगते थे। इस मंदिर में मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है जो मां दुर्गा के नौ रूप में से एक सिद्धिदात्री स्वरूप में पूजित हैं। घोसरावां मंदिर के पुजारियों के मुताबिक यहां के मंदिर में सबसे पहले राजा जयपाल ने पहली बार पूजा की थी। इसी स्थापना के पीछे की कहानी यह है कि यहां एक गढ़ हुआ करता था जिस पर मां आशापुरी विराजमान थी। गढ़ पर ही आज भी मां का मंदिर बना हुआ है। सभी भक्तों का मनोकामना पुरी करती है मां आशापुरी ।यहां हर मंगलवार को काफी भीड़ जुटती है ।ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक जब प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय अपने समृद्धि के दौर में था तो उस दौरान यहां भी पढ़ाई होती थी।
साधना की वजह से लगी है रोक
नवरात्र के समय मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है. क्योंकि नवरात्र में तांत्रिकों का जमाबड़ा लगा रहता है. यहां आकर लोग सिद्धि प्राप्त करते थे उसी समय से पूरे नवरात्र में यहां तांत्रिक पूजा यानी तंत्रियाण पूजा होती है. तंत्रियाण पूजा में महिलाओं पर पूर्ण रूप से प्रवेश निषेध माना गया है. ये प्रथा आदिकाल से ही चली आ रही है।
निशा पूजा के बाद दी जाती है बलि
नवमी के दिन यहां पर निशा पूजा के बाद पशु की बलि दी जाती है और दशमी की रात्रि आरती के बाद ही महिलाओं को माता के दर्शन की अनुमति दी जाती है। इस मंदिर में आशा देवी की दो मूर्तियों के अलावे शिव-पार्वती और भगवान बुद्ध की कई मूर्तियां हैं। काले पत्थर की सभी प्रतिमाएं बौद्ध, शुंग और पाल कालीन हैं। जानकारों का कहना है कि 9 वीं शताब्दी में बज्र यान, तंत्र यान और सहज यान का बहुत तेजी से फैलाव हुआ था। उस समय यह स्थल विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध साधना का केंद्र था। बौद्ध धर्म के धर्मावलंबी अपनी सिद्धि के लिए इसी स्थल का उपयोग करते थे।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। जिसमें पुरुष और महिलाओं के बीच भेदभाव को खत्म करते हुए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर से लगी रोक को हटाने का आदेश दिया था। उस फैसले के आलोक में ये गलत और असंवैधानिक है। लेकिन घोसरावां के महिलाओं का कहना है कि उन्हें बुरा तो लगता है। लेकिन नवरात्र के बाद वो माता की अराधना कर लेते हैं।