नालन्दा का एक मस्जिद ऐसा भी…जिसकी देखभाल और अजान हिन्दू देते हैं

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देश में जहां इंटॉलरेंस को लेकर बहस जारी है। वहीं नालंदा जिला का एक ऐसा गांव है, जो सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बना हुआ है। ये गांव बेन प्रखंड का माड़ी गांव है ।दंगों की वजह से इस गांव से पलायन कर चुके मुसलमानों के नहीं रहने के बाद भी करीब 200 साल पुरानी मस्जिद अब भी गांव की धरोहर बनी हुई है। यहां हिदू समाज के लोग सुबह-शाम मस्जिद की साफ-सफाई करते हैं। हर साल ईद पर मस्जिद का रंग-रोगन भी किया जाता है। कौमी-एकता की इससे बेहतरीन मिशाल नहीं हो सकती है। कारण यहां पर हिन्दू भाई पेन ड्राइव के माध्यम रिकार्ड किए गए टेप से गांव के लोगों को पांचों वक्त का अजान की आवाज सुनते हैं।

200 पुराना है इतिहास ग्रामीण शिवचरण बिन्द ने बताया कि मस्जिद का निर्माण बिहारशरीफ स्थित सदरे आलम स्कूल के निदेशक खालिद आलम के दादा बदरे आलम ने 200 वर्ष पहले कराया था। माड़ी गांव में 1981 से पहले अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समाज के लोग मिल-जुलकर साथ रहते थे। लेकिन 1981 में हुए दंगा के बाद मुस्लिम परिवार इस गांव से पलायन कर गए। इसके बाद से इस गांव में बहुसंख्यक समाज के ग्रामीण रह रहे हैं और गांव में बनी मस्जिद की देखभाल कर रहे हैं।

रिकार्डिंग के माध्यम से दी जाती है अजान गांव के ही संजय पासवान ने बताया कि गांव में मंदिर होने के बाद भी हिदू समाज के लोग मस्जिद को गांव की अनमोल धरोहर मानते हैं।
चिप में अजान की रिकॉडिग रखते है। उन्होंने बताया कि उन्हें अजान के बारे में कोई जानकारी नहीं है। बस समय का पता रहता है । इसके लिए एक चिप की व्यवस्था की गई है जिसे मशीन में लगा कर निर्धारित समय पर अजान दिया जाता है।

मंडी से नाम पड़ा माड़ी
खालिद आलम ने बताया कि पहले इस गांव का नाम मंडी था। यह जिले में एक बाजार के रूप में स्थापित था। बाद में इसका नाम माड़ी पड़ा। लेकिन गांव में बार-बार बाढ़ व आग लगने से हुई तबाही के बाद इसका नाम बदलता चला गया। पहली तबाही के बाद इसका नाम नीम माड़ी पड़ा, फिर पाव माड़ी, इसके बाद मुशारकत माड़ी और अंत में इस्माइलपुर माड़ी।

हजरत इस्माइल रह. के बाद बंद हुई तबाही
खालिद आलम ने बताया कि हजरत इस्माइल रह. के दौर में गांव काफी खुशहाल हो चुका था। वह करीब 5 से 6 सौ साल पहले गांव में आए थे। उनके आने के बाद गांव में कभी तबाही नहीं आई। शादी के बाद लोग सबसे पहले हजरत के अस्ताने पर जाकर सलाम पेश करते है। आज ये मस्जिद व हजरत का अस्ताना गांव की धरोहर बन चुकी है। यही वजह है कि इस गांव में आज भी इंसानियत जिदा है।

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