मंगलवार यानि 2 अक्टूबर 2018 को जीतिया का पर्व है। महिलाएं वंशवृद्धि और संतान की लंबी आयु के लिए भगवान जीमूतवाहन (जिउतिया) की पूजा करेंगी और 24 घंटे के निर्जला निराहार व्रत रखेंगी। व्रत का पारण 3 अक्टूबर की सुबह 6.15 बजे के बाद होगा। व्रती नहाने के बाद मड़ुआ की रोटी, नोनी का साग, कंदा, करमी आदि खाती हैं।
महापुरुष योग में मनेगी जीतिया
जिउतिया पर भद्र पंच महापुरुष योग और गुरु शुभ वेशी योग संयोग बन रहा है। चंद्रमा के केंद्र से चौथे, सातवें और दसवें भाव में बुध के रहने से भद्र पंच महापुरुष योग का संयोग बन रहा है। इस बार बुध कन्या राशि में उच्च के होंगे। जिससे यह संयोग बनेगा।
सरगही-ओठगन रात 2.41 से पहले
आश्विन कृष्ण सप्तमी 1 अक्टूबर की रात 2:41 तक ही सप्तमी तिथि है। व्रती महिलाएं चाय शरबत आदि का सेवन करके व्रत का संकल्प लेंगी। ऐसे में रात 2.41 बजे से पहले सरगही करना चाहिए
जिउतिया की पूजन विधि
आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। माना जाता है जो महिलाएं जीमूतवाहन की पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करती हैं उनके संतान को लंबी आयु और सभी सुखों की प्राप्ति होती है। पूजन के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित कर पूजा की जाती है। फिर कथा सुनी जाती है।
जीतिया की कथा
एक समय की बात है जब गन्धर्वों के राजकुमार थे जिनका नाम था ‘जीमूतवाहन’। कहते हैं कि वे बड़े उदार और परोपकारी थे।काफी छोटी उम्र में इन्हें राज्य का सिंहासन प्राप्त हो गया था, लेकिन उन्हें वह मंजूर ना था। कहा जाता है कि जीमूतवाहन के पिता ने वृद्धावस्था में वानप्रस्थ आश्रम में जाते समय इनको राजसिंहासन पर बैठाया, किन्तु इनका मन राज-पाट में नहीं लगता था।अंतत: वे राज्य का भार अपने भाइयों पर छोड़कर स्वयं वन में पिता की सेवा करने चले गए और वहीं पर उनका मलयवती नाम की राजकन्या से विवाह हो गया।
एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीमूतवाहन काफी आगे चले गए, तब उन्हें अचानक किसी कोने से कुछ आवाज़ आई। आगे चलकर देखा तो उन्हें एक वृद्धा विलाप करते हुए दिखी। उसका दुख देखकर उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने वृद्धा की इस अवस्था का कारण पूछा।पूछने पर वृद्धा ने रोते हुए बताया, “मैं नागवंश की स्त्री हूं और मुझे एक ही पुत्र है। पक्षीराज गरुड़ के सामने नागों ने उन्हें प्रतिदिन भक्षण हेतु एक नाग सौंपने की प्रतिज्ञा की हुई है, जिसके अनुसार आज मेरे ही पुत्र ‘शंखचूड़’ की बलि देने का दिन है। अब आप ही बताएं यदि मेरा इकलौता पुत्र बलि पर चढ़ गया तो मैं किसके सहारे अपना जीवन व्यतीत करूंगी।
वृद्धा की बात सुनकर जीमूतवाहन का दिल पसीज उठा। उन्होंने वृद्धा को आश्वस्त करते हुए कहा, “हे माता, डरो मत। मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। आज उसके बजाय मैं स्वयं अपने आपको उसके लाल कपड़े में ढककर वध्य-शिला पर लेटूंगा। इतना कहकर जीमूतवाहन ने शंखचूड़ के हाथ से लाल कपड़ा ले लिया और वे उसे लपेटकर गरुड़ को बलि देने के लिए चुनी गई वध्य-शिला पर लेट गए।
ठीक समय पर पक्षीराज गरुड़ भी वहां पहुंच गए वे लाल कपड़े में ढके जीमूतवाहन को अपने पंजे में दबोचकर पहाड़ के शिखर पर जाकर बैठ गए। अपने चंगुल में गिरफ्तार प्राणी की आंख में आंसू और मुंह से आह निकलता न देखकर गरुड़जी बड़े आश्चर्य में पड़ गए। ऐसा पहली बार हुआ था कि बलि पर चढ़ाया जाने वाला जीव बिना किसी कष्ट को महसूस किए खुद को मौत के द्वार पर लाया है।
पक्षीराज गरुड़ कुछ दुविधा में पड़ गए फिर अंतत: उन्होंने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा। पूछने पर जीमूतवाहन ने उस वृद्धा स्त्री से हुई अपनी सारी वार्तालाप को विस्तारित किया। पक्षीराज गरुड़ हैरान हो गए, उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि किसी की मदद करने के लिए कोई इतनी बड़ी कुर्बानी दे सकता है।
लेकिन कुछ देर बाद वे जीमूतवाहन की इस बहादुरी और दूसरे की प्राण-रक्षा करने में स्वयं का बलिदान देने की हिम्मत से बहुत प्रसन्न भी हुए। इसलिए प्रसन्न होकर उन्होंने जीमूतवाहन को जीवनदान दे दिया तथा भविष्य में नागों की बलि न लेने का वरदान भी दे दिया। इस प्रकार जीमूतवाहन के साहस से नाग-जाति की रक्षा हुई। केवल इतना ही नहीं, मूल संदर्भ से उनके इस प्रयास से एक मां के पुत्र की रक्षा हुई, उसके पुत्र को जीवनदान मिला।
इसलिए तभी से पुत्र की सुरक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा की जाती है एवं महिलाएं पूर्ण विधि-विधान से व्रत भी करती हैं।