द्वापरकालीन सूर्य नगरी बड़गांव में छठपूजा का विशेष महत्व होता है । इसकी महत्ता देश ही नहीं विदेशों तक फैली है। यहां छठ करने के लिए दूसरे राज्यों से भी काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। ऐसे में बड़गांव के लोगों को रोजगार भी मिलता है । खास बात ये है कि यहां एक भी सार्वजनिक धर्मशाला नहीं है। ऐसे में बाहर से आने वाले श्रद्धालु निजी घरों के कमरे किराया पर लेकर चार दिनों तक रहकर सूर्यदेव की उपासना करते हैं। बड़गांव में अबतक 11 सौ से ज्यादा कमरे बुक हो चुके हैं।
किराये में इजाफा
पिछले साल की अपेक्षा कमरे के किराया में जोरदार इजाफा हुआ है। पहले एक रूम तीन हजार में आसानी से मिल जाता था। इस बार दो गुने से भी ज्यादा किराया हो गया है । खास बात ये है कि अगर तालाब के आसपास का कमरा है तो आपको तीन गुना तक किराया देना पड़ सकता है।
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जानिए कितना है किराया
इस साल कोई भी मकान मालिक पांच हजार कम में किराया देने को तैयार नहीं है। अगर कमरा बड़ा है एवं शौचालय और पानी का बेहतर इंतजाम है तो किराया छह से सात हजार के बीच में है। अगर कमरा ऐतिहासिक सूर्य तालाब के पास है तो किराया आठ हजार के करीब है। हां और ज्यादा दूर है तो आपको साढ़े चार तक किराया मिल सकता है । वो भी सिर्फ चार दिनों के लिए ही।
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तत्काल की भी सुविधा:
प्रसिद्ध सूर्यधाम में यात्री सुविधाओं का अभाव है। खासकर ठहरने के लिए। भला हो यहां के लोगों को जो घरों के कमरे श्रद्धालुओं के लिए खुला रखते हैं। हाल ही में नालंदा को नगर पंचायत का दर्जा जरूर मिला है। लेकिन, शहरीय सुविधाएं कहीं नहीं दिखती। साल में दो बार चैती और कार्तिक छठ के मौके पर किराया का उद्योग यहां के लोगों को संजीवनी देती है। दूर-दराज के श्रद्धालु पर्व शुरू होने से एक माह पहले ही कमरे की एडवांस बुकिंग कराने लगते हैं। सूर्यपीठ के लोग ऐसे श्रद्धालुओं को किराये में थोड़ी राहत भी देते हैं। जबकि, जो एडवांस बुकिंग न करा सकें, उनके लिए तत्काल कमरे भी उपलब्ध मिलते हैं। परेशानी यह कि किराया ज्यादा देना पड़ता है।
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खाली जमीन में लगायें तम्बू, नहीं लगेगा किराया:
छठ के मौके पर तालाब के आसपास तम्बुओं का शहर बस जाता है। श्रद्धालुओं के लिए राहत यह कि खाली जमीन में तम्बू लगाने के लिए यहां के किसान कोई किराया नहीं लेते हैं। नहाय-खाय के दिन से तम्बू लगाकर श्रद्धालु ठहरते हैं। सूर्योपासना के दौरान जहां तक नजर जाती है, वहां तक तम्बुओं का ही शहर तालाब के किनारे दिखता है। उगते सूर्य को अर्घ्य देकर वापस व्रती और उनके परिजन लौट जाते हैं।
तालाब के पानी से बनाया जाता है प्रसाद :
लोगों में सूर्य मंदिर और ऐतिहासिक तालाब के प्रति काफी श्रद्धा है। बड़गांव सूर्य तालाब के पानी से ही लोहंडा का प्रसाद बनाया जाता है। पंडाल कमेटी के लव मिश्रा बनाते हैं कि आसपास के बड़गांव, सूरजपुर, बेगमपुर आदि गांवों के लोग भी इसी तालाब से पानी ले जाकर छठ का प्रसाद बनाते हैं। उनका कहना है कि परंपरा काफी पुरानी है, जो अबतक जारी है।
चार दिनों तक चप्पल नहीं पहरते बड़गांव के लोग :
पवित्रता का पर्व छठ के नहाय से दूसरी अर्घ्य तक बड़गांव के ब्राह्मण टोले के कई लोग चप्पल नहीं पहरते हैं। यह परंपरा उनके बुजुर्गों द्वारा शुरू की गयी है, जिसका पालन अब भी किया जाता है। चप्पल नहीं पहरने का मुख्य मकसद यह कि व्रतियों को किसी तरह की असुविधा न हो। सूर्यनगरी की महत्ता इतनी कि यहां कष्टी करने वाले श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है। श्रद्धालु तालाब से आधा किमी दूर सूर्य मंदिर तक लेटकर जाते हैं। व्रतियों को कोई परेशान न हो, इसी वजह से यहां के लोग छठ के दौरान चप्पल धारण करने से बचते हैं।
मेला पर रोक से मायूसी :
छठ के अवसर पर बड़गांव में मेला लगता है। लेकिन, इसबार कोरोना के कारण प्रशासन द्वारा मेला के आयोजन पर पाबंदी लगा दी गयी है। इससे स्थानीय लोगों में मायूसी है। उनका कहना है कि बड़गांव मेला को राष्ट्रीय मेला का दर्जा दिया गया है। बावजूद, भेदभाव की जा रही है। मंदिर के पुजारी लव मिश्रा बताते हैं कि पंडा कमेटी की ओर से छठ पूजा के दौरान 15 वॉलेंटियर तैनात किये जाएंगे।