तेल्हाड़ा में 28 करोड़ की लागत से बनेगा म्यूजियम… जानिए खासियत

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नालंदा जिला के तेल्हाड़ा में म्यूजियम बनाया जाएगा. इसके लिए जगह का चयन कर लिया गया है. जिसपर 28 करोड़ रुपए की लागत से म्यूजियम का निर्माण किया जाएगा

तेल्हाड़ा हाईस्कूल में बनेगा म्यूजियम
तेल्हाड़ा उच्च विद्यालय के मैदान के लगभग डेढ़ एकड़ हिस्से पर 28 करोड़ रुपए की लागत से संग्रहालय निर्माण किया जाएगा. कला संस्कृति एवं युवा विभाग के अपर सचिव सह निदेशक अनिमेष पराशर और डीएम योगेंद्र सिंह ने तेल्हाड़ा में संग्रहालय के लिए प्रस्तावित जमीन का निरीक्षण किया।

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जमीन को लेकर था विवाद
अनिमेष पराशर के मुताबिक इससे पहले संग्रहालय के लिए जो जमीन चिन्हित की गई थी, वो लिंक रोड पर थी, इस कारण संग्रहालय के लिए उपयुक्त नहीं मानी गई। अब डीएम ने तेल्हाड़ा हाईस्कूल के मैदान की जमीन का चयन किया है, जो संग्रहालय के लिए काफी उपयुक्त है। यह जमीन इस्लामपुर-तेल्हाड़ा मुख्य मार्ग पर है और साथ ही तेल्हाड़ा के खुदाई स्थल से भी काफी नजदीक है।

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नालंदा और विक्रमशिला से प्राचीन विश्वविद्यालय
तेल्हाड़ा में विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं. जो नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी प्राचीन है। यह महाविहार पहली शताब्दी में अस्तित्व में था, जबकि नालंदा चौथी और विक्रमशिला सातवीं शताब्दी का है। यह राज्य का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय का नाम तिलाधक, तेलाधक्य या तेल्हाड़ा नहीं बल्कि श्री प्रथम शिवपुर महाविहार है। चीनी यात्री इत्सिंग ने अपने यात्र वृतांत में तेल्याधक विश्वविद्यालय का जिक्र किया है। वे कहते हैं कि यहां तीन टेम्पल थे, मोनास्‍ट्री कॉपर से सजी थी। हवा चलती थी तो यहां टंगी घंटियां बजती थीं। अब तक हुई एक वर्ग किमी की खुदाई में तीनों हॉल, घंटियां सैकड़ों सील-सीलिंग, कांस्य मूतियां आदि मिल चुकी हैं। ईंटें जो मिली हैं वह 42 गुना, 32 गुना, 6 से.मी. की हैं।

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नालंदा यूनिवर्सिटी से 300 साल पुरानी थी 
पुरातत्व विभाग के मुताबिक तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय, नालंदा यूनिवर्सिटी से 300 साल पुराना था।तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय की स्थापना कुषाण काल में हुई थी. जबकि नालंदा महाविहार (विश्वविद्यालय) की स्थापना गुप्त काल में हुई थी। यहां महायान की पढ़ाई होती थी।

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12 सौ साल तक परवान पर था 
ईसा पूर्व 100 से वर्ष 1100 तक तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय परवान पर था। यहां भी देसी-विदेशी छात्र एक साथ रहकर पढ़ाई करते थे। इसके अंत का हाल नालंदा जैसा ही है। इसका संचालन भी स्थानीय गांवों से होने वाली आय से होती थी। इसकी आय नालंदा विश्वविद्यालय से अधिक थी। अकाल पड़ने के बाद एक बार ऐसी स्थिति आयी थी कि नालंदा विश्वविद्यालय बंद होने के कगार पर आ गया था, लेकिन तेल्हाड़ा महाविहार के लोगों ने दान देकर ऐसा नहीं होने दिया।

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बख्तियार खिलजी ने ही जलाया था 
पुरातत्व विभाग के मुताबिक मनेर से होते हुए सबसे पहले बख्तियार खिलजी तेल्हाड़ा पहुंचा था। इसके बाद इस विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों को भगाकर वहां आग लगा दी थी। खुदाई के दौरान इसके साक्ष्य मिले हैं। यह भी कहा जाता है कि विश्वविद्यालय के खंडहर के रूप में तब्दील होने के बाद बिहार की पहली मस्जिद उसने तेल्हाड़ा में ही बनवायी थी।

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