शिक्षा नगरी नालंदा में दो हजार साल से ज्यादा पुराने अवशेष मिले हैं । इन अवशेषों को दुर्लभ माना जा रहा है। जिसमें शिवलिंग भी शामिल हैं । खुदाई में मिले शिवलिंग को ग्रामीण अपने साथ ले गये और शिवमंदिर में स्थापित कर दिया।
कहां हुई खुदाई
विश्व धरोहर की सूची में शामिल नालंदा खंडहर के पास तालाब की खुदाई की गई । जिसमें कई संरचनाएं मिली हैं। ये संरचना पालकालीन हो सकती है। चर्चा है कि नालंदा विश्वविद्यालय के समय यहां तालाब और सीढ़ियां थी। शिक्षक और छात्र यहां स्नान करते थे। तालाब की खुदाई गलत तरीके से की जा रही थी।
ASI ने रुकवा दी थी खुदाई
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसकी सुरक्षा के लिए बाउंड्री बनवाने का आदेश दिया है।एएसआई के मुताबिक ये यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का बफर जोन है। जिसमें खुदाई के लिए राज्य कला और संस्कृति विभाग से एनओसी (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) लेना पड़ता है। लेकिन, तालाब की खुदाई करवा रही कार्य एजेंसी ने ऐसा नहीं किया। बल्कि चोरी चुपके रात में खुदाई होती रही
खुदाई में क्या-क्या मिले
खुदाई में शिवलिंग समेत कई प्राचीन और दुर्लभ अवशेष मिले हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि रात को छिपकर खुदाई की जाती थी। यहां मिले कई प्राचीन अवशेषों को लोग ट्रैक्टर पर लादकर ले गये हैं। खुदाई में मिले शिवलिंग को ग्रामीण अपने साथ ले गये और मोहनपुर गांव के शिवमंदिर में स्थापित कर दिया। इसी प्रकार अन्य अवशेष भी इधर-उधर कर दिया गया।
विश्व धरोहर है नालंदा खंडहर
नालंदा खंडहर को 15 जुलाई 2016 को यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया था। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में कुमारगुप्त ने की थी। 780 सालों तक यह बौद्ध धर्म, चिकित्सा, गणित, वास्तु आदि विषयों की पढ़ाई का केन्द्र बना रहा। भारत के अलावा दूसरे देशों से भी छात्र यहां पढ़ाई करने आते थे। यहां 10 हजार छात्र थे। उन्हें पढ़ाने के लिए दो हजार शिक्षक थे।
खिलजी ने लगा दी थी आग
1199 ई. में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया। कहते हैं कि यहां इतनी किताबें थी कि तीन महीने तक आग धधकती रही।