लाखों कमाएंगे किसान, सरकार ने बनाई रुपरेखा

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किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लिए सरकार लगातार काम कर रही है। सिंचाई की समस्या को देखते हुए बिहार सरकार वैकल्पिक खेती को बढ़ावा देने पर जुटी है। इसके लिए अब किसानों को सहजन यानि ड्रमस्टिक यानि मुनगा की खेती के लिए प्रेरित करने में जुटी है ।दक्षिण बिहार के 17 जिलों में सहजन की खेती कराई जाएगी। इसके लिए नालंदा जिले के दो प्रखंडों का चयन हुआ है ।

लाखों रुपए कमा सकते हैं किसान
सहजन को बिहार में मुनगा भी कहा जाता है। जिसे अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है. सरकार के मुताबिक सहजन की खेती लगाने के 10 महीने बाद एक एकड़ में किसान तीन लाख रुपए कमा सकते हैं। कम लागत में तैयार होने वाली इस फसल की खासियत ये है कि इसकी एक बार बुवाई के बाद चार साल तक बुवाई नहीं करनी पड़ती है। खास बात ये है कि सहजन के फल ही नहीं पत्तियां भी करीब 1 हजार रुपये किलो बिकता है।सहजन का छाल, पत्ती, बीज, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवा तैयार किया जाता है, जो लगभग 300 प्रकार के बीमारियों के इलाज में काम आता है। सहजन के पौधा से गूदा निकालकर कपड़ा और कागज उद्योग के काम में व्यवहार किया जाता है।

सहजन में औषधीय गुण
आयुर्वेद ने करीब 5 हजार साल पहले सहजन की खूबियों को पहचाना था. इ सके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। एक अध्ययन के अनुसार इसमें दूध की तुलना में चार गुणा पोटाशियम तथा संतरा की तुलना में सात गुणा विटामिन सी. है। “संजीवन हर्बल” व्यवसायिक रूप से सहजन से दवा बनाकर (पाउडर, कैप्सूल, तेल बीज आदि) विदेशों में निर्यात कर रहे हैं

किन किन जिलों का चयन
यह योजना गया, औरंगाबाद, नालंदा, पटना, रोहतास, कैमूर, भागलपुर, नवादा, भोजपुर, जमुई, बांका, मुंगेर, लखीसराय, बक्सर, जहानाबाद, अरवल एवं शेखपुरा के किसानों के लिए है। इसके लिए किसानों को सरकार 50 फीसदी अनुदान देगी। उन्होंने कहा कि सहजन की खेती पर प्रति हेक्टेयर लागत 74 हजार रुपये की आती है, जिसमें 37.5 हजार रुपये किसानों को अनुदान मिलेगा। वर्ष 2019-20 एवं 2020-21 दो वर्षो में सहजन की खेती के लिए 353.58 लाख रुपये की योजना स्वीकृत की गई है। अनुदान राशि दो किस्तों में मिलेगी। पहली किस्त में किसानों को 27,780 रुपये और दूसरी किस्त में 9,250 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से भुगतान किया जाएगा।

नालंदा के दो प्रखंडों का चयन
नालंदा जिले के दो प्रखंड राजगीर और इस्लामपुर को सहजन की खेती के लिए चयन किया गया है। बाद में अन्य प्रखंडों में यह कार्यक्रम चलाया जायेगा। दोनों प्रखंडों के 9 पंचायतों में सहजन बीज का वितरण कर दिया गया है। राजगीर प्रखंड के लोदीपुर, बरनौसा, नई पोखर, भूई और इस्लामपुर प्रखंड के बौरीडीह, कोचरा, महमूदा, सूढ़ी और वरदाहा पंचायत में चयनित किसानों को बीज उपलब्ध कराया गया है। बीएचओ ने बताया कि बीज से पहले नर्सरी तैयार करना होगा। उसके बाद खेत में लगाना होगा।

किसानों को दिया जा रहा बीज
किसान बंजर भूमि पर सहजन से सालाना लाखों रुपये का आमदनी कर सकते हैं। दोनों प्रखंड के 30-30 हेक्टेयर में सहजन की खेती का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। किसानों का चयन कर बीज उपलब्ध कराया गया है। जिन किसानों के पास एक एकड़ जमीन है उन्हें छोटी मोटी नौकरी तलाशने की जरूरत नहीं है।सहजन का फूल, फल और पत्तियों का भोजन के रूप में व्यवहार होता है।

25 से 30 डिग्री तापमान पर कर सकते हैं खेती
गर्म इलाकों में यह आसानी से फलता फूलता है। इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती। इसका फुल खिलाने के लिए 25-30 डिग्री तापमान की जरूरत होती है। यह सुखी बलुई या चिकनी बलुई मिट्‌टी में अच्छी तरह से बढ़ता है। साल में दो बार फल देता है और एक पेड़ 10 साल तक बेहतर फल देता है।सहजन का वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसकी खेती होती है। फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है।

सहजन की नई प्रजाति ज्योति -1
सहजन की एक नई प्रजाति की खोज की है, जिसका नाम है “ज्योति-1” है। इस प्रजाति को लगाने से एक पौधे में 700 फलियां लगती हैं, जबकि दूसरी प्रजाति में सिर्फ 250 ही फलियां लगती हैं। एक एकड़ खेत में सहजन के 250 ग्राम बीज की जरूरत होती है, लाइन से लाइन की दूरी 12 फिट और प्लांट से प्लांट की दूरी 7 फिट रखी जाती है, एक एकड़ खेत में 518 पौधे लगाए जाते हैं। अप्रैल महीने में बुवाई के बाद सितम्बर महीने में फलियां बाजार में बिकनी शुरू हो जाती हैं। गर्मी के मौसम में 10 रुपए किलो और सर्दियों के मौसम में 40 रुपए किलो के हिसाब से बिकती हैं। बारिश के मौसम को छोड़कर सहजन के पेड़ में दो बार फलियां लगती हैं।

पशुओं के चारे के रूप में उपयोगी
चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। कुपोषण, एनीमिया (खून की कमी) में सहजन फायेदमंद होता है।

सहजन के पेड़ को भुआ पिल्लू से बचाना है
बिहार में सहजन पर सबसे ज्यादा आक्रमण भुआ पिल्लू नामक कीट से है. अगर इसे नियंत्रित नहीं किया जाय तो यह सम्पूर्ण पौधे की पत्तियों को खा जाता है तथा आसपास में भी फ़ैल जाता है। अंडा से निकलने के बाद अपने नवजात अवस्था में यह कीट समूह में एक स्थान पर रहता हैं बाद में भोजन की तलाश में यह सम्पूर्ण पौधों पर बिखर जाता है। इसके नियंत्रण के लिए सरल और देशज उपाय यह है कि कीट के नवजात अवस्था में सर्फ को घोलकर अगर इसके ऊपर डाल दिया जाय तो सभी कीट मर जाते हैं। वयस्क अवस्था में जब यह सम्पूर्ण पौधों पर फ़ैल जाता है तो एकमात्र दवा डाइक्लोरोवास (नूभान) 0.5 मिली. एक लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करने से तत्काल लाभ मिलता है। सहजन के दूसरे कीट में कभी-कभी फल पर फल मक्खी का आक्रमण होता है। इस कीट के नियंत्रण हेतु भी डाइक्लोरोवास (नूभान) 0.5 मिली. दवा एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने पर कीट का नियंत्रण होता है।

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