नालंदा के लाल गुरुसहाय बाबू को किया गया याद, गुरुसहाय लाल के बारे में जानिए

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महान स्वतंत्रता सेनानी और नालंदा के लाल गुरुसहाय बाबू को उनकी 130 वीं जयंती के मौके पर याद किया गया. इस मौके पर बिहारशरीफ के अंबेर चौक स्थित उनकी प्रतिमा पर श्रद्धांजलि दी गई. इस मौके नालंदा के डीएम ने कहा कि गुरुसहाय लाल शिक्षाविद् के साथ समाज सुधारक थे। वे आजीवन शिक्षा के अधिकार सभी को मिले इसकी वकालत करते रहे थे। वहीं वे अपने जीवन में हमेशा समाजिक कुरीतियों का विरोध करते रहे.  आज ऐसे लोग की जरूरत देश को है। हमें गुरुसहाय लाल के पदचिन्हों पर चलना होगा। यहीं उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

कौन थे गुरुसहाय लाल
गुरुसहाय लाल का जन्म 11 अगस्त 1889 को गिरियक ब्लॉक के वादी गांव में हुआ था । वे एक महान शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी और किसान नेता थे. गुरुसहाय बाबू ने साल 1908 में मैट्रिक और 1910 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी. इसके बाद कोलकाता यूनिवर्सिटी से बीए और बीएल की डिग्री हासिल की.

टीचर से वकील बने
स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद गुरुसहाय लाल ने पटना कॉलेजिएट स्कूल में टीचर की नौकरी ज्वॉइन कर ली. लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा. उसके बाद उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की और साल 1914 में उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी।

पटना जिला परिषद के वाइस चेयरमैन बने
देश में जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया. साल 1922-33 तक पटना जिला परिषद के वाइस चेयरमैन रहे.

1924 में विधान पार्षद बने
इसके बाद साल 1924 में बिहार-उड़ीसा राज्य के लिए विधान परिषद के लिए निर्वाचित किए गए. साल 1927 में वे दोबारा विधान परिषद के लिए चुने गए

पिछड़ों को जोड़ने का काम किया
गुरु सहाय लाल आज से करीब 100 साल पहले पिछड़ी जातियों को एकजुट करने का काम किया . उन्होंने साल 1925 त्रिवेणी संघ की स्थापना की थी. ये तीन जातियों का संगठन था. जिसमें यादव, कुर्मी और कोइरी शामिल थे. इसकी ताकत का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं

कुर्मी जाति को एकजुट किया
गुरु सहाय बाबू ने त्रिवेणी संघ की स्थापना के बाद अपनी जाति कुर्मी को एकजुट करना शुरू किया. साल 1926 में उन्होंने कुर्मी महासभा का आयोजन किया. उन्होंने इसके जरिए तीन पिछड़ी जातियों को एकजुट किया और जमींदारों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया .

जमींदारों के खिलाफ मोर्चा खोला
गरीब किसानों की हालत ने गुरु सहाय बाबू को झकझोर दिया और उसी समय उन्होंने जमींदारों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। गांव-गांव जाकर लोगों को गोलबंद करने लगे और बिहार टेनेंसी एक्ट में संशोधन कराया

कांग्रेस के सदस्य बने
गुरुसहाय बाबू साल 1929 कांग्रेस की सदस्यता ले ली. लेकिन कांग्रेस की विचारधारा से वे खुश नहीं थे. महज एक साल बाद साल 1930 कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया.

1937 में मंत्री बने
साल 1937 में चुनाव के बाद बिहार में युनूस खान के नेतृत्व में सरकार बनी. जिसमें त्रिवेणी संघ और किसान नेता गुरु सहाय बाबू को शामिल किया गया. जिसमें उन्हें राजस्व और भूमि सुधार मंत्रालय दिया गया. हालांकि इसके बाद जब श्रीकृष्ण सिंह की सरकार बनी तो उन्हें जगह नहीं मिली.

1949 में निधन
गुरु सहाय बाबू किसानों के कल्याण के लिए काम तो किया ही . साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया . आजादी के दो साल बाद यानि साल 1949 में गुरुसहाय लाल का निधन हो गया . इसके साथ ही एक चमकता सितारा डूब गया. बिहार में जब भी किसान आंदोलन और पिछड़ा राजनीति की बात होगी में तब तक गुरु सहाय बाबू को याद किया जाएगा. नालंदा लाइव भी उनकी जयंती पर जिलावासियों की तरफ से सच्ची श्रद्धांजलि देता है।

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